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daughters day शहर की बेटियां हर क्षेत्र में मनवा रही अपना लोहा, दिखा रही जौहार

locationसागरPublished: Sep 23, 2018 10:46:10 am

Submitted by:

Sanket Shrivastava

बेटियां किसी मामले में कम नहीं हैं। वे केवल घर ही नहीं, बल्कि हर जिम्मेदारी, हुनर और दायित्व को पूरी तरह निभा रही हैं।

Special on daughters day

Special on daughters day

सागर. बेटियां किसी मामले में कम नहीं हैं। वे केवल घर ही नहीं, बल्कि हर जिम्मेदारी, हुनर और दायित्व को पूरी तरह निभा रही हैं। दंगल मूवी का डायलॉग म्हारी छोरी छोरों से कम हे का…शहर की बेटियों पर सटीक बैठता है। इन्होंने कला, शिक्षा और खेल जगत में अपने हुनर का लोहा मनवाया है। आज बेटी दिवस के मौके पर पत्रिका आपको एेसी ही बेटियों से रूबरू करा रहा है, जिनके सपने ऊंचे हैं।
शांभवी ने मंचों पर दी कथक की प्रस्तुति
बुंदेलखंड पर्यटन की ब्रांड एम्बेसेडकर शाम्भवी शुक्ला कथक की अंतरराष्ट्रीय कलाकार हैं। यूनेस्को की इंटरनेशनल डांस काउंसलिंग की भी सदस्य हैं। देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर इन्होंने प्रस्तुति दी हैं। वे दिल्ली दूरदर्शन की ए ग्रेड की कलाकार हैं। मां कविता और पिता मुन्ना शुक्ला का सहयोग से उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है। मां उन्हें बचपन से ही सुबह ५ बजे उठाकर अभ्यास कराती थीं। बिहार द्वारा संगीत कलाकार, प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद द्वारा नृत्य प्रवीण, सुर सिंगार मुंबई द्वारा श्रंगारमणि, नई दिल्ली द्वारा एक्सीलेंस अवार्ड एवं कथक कला रत्न से विभूषित हो चुकी हैं। ये २० वर्षों से गुरु शिष्य परंपरा के तहत कथक नृत्य की तालीम भी दे रही हैं।
6 साल की उम्र से मंच पर कर रहीं कविता
शहर की बेटी ऐश्वर्या दुबे अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं मुशायरा में देश के कई राज्यों में अपनी प्रस्तुति ६ साल की उम्र से दे रही हैं। मां अंजना दुबे और पिता रवीन्द्र दुबे की मेहनत की वजह से आज वे इस मुकाम पर हैं। जहां भी कार्यक्रम होता है पिताजी अपना काम छोड़कर साथ लेकर जाते हैं। उन्हें कविता, गीत, गजल जैसी विधाओं में पारांगत होने की वजह से २०१६ में बहुयामनी प्रतिभा सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।
लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग
कला के साथ खेल में लड़किया पीछे नहीं है। कल्याणी द्विवेदी की खेल की शुरुआत गल्र्स कॉलेज में तब हुई जब वह बीएससी फस्ट ईयर की स्टूडेंट थी। प्रिंसिपल आशालता दुबे और स्पोट्र्स टीचर मोनिका हार्डिकर ने स्पोट्र्स कैंप में सेल्फ डिफेंस के लिए में भाग लेने लिए भेजा था। तकनीक सीखने के लिए कराते क्लास में एडमिशन ले लिया। मेहनत के बाद फाइट की और गोल्ड मेडल आया , फिर स्टेट लेवल ,नेशनल और राष्ट्रीय खेलों की बारी आ गई। मां पार्वती और पिता रामसेवक द्विवेदी के सहयोग से नेशनल खेल गुवाहाटी में 2007 में भाग लिया और वूशु खेल में कांस्य मेडल लिया। वूशु खेल में डिप्लोमा का कोर्स कर एक स्कूल में 6 माह वूशु कोच रही। 2010 से खेल युवा कल्याण विभाग में कोच नियुक्त हुई और वर्तमान में भारतीय खेल प्रधिकरण में प्रशिक्षक हैं।
खेल के साथ पढ़ाई में भी माहिर
सेंट्रल स्कूल (क्रं१) में दसवीं कक्षा अलीशा खान कू डो में पहचान बनाई है। स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय कूडो प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक एवं बेस्ट प्लेयर का अवार्ड से इन्हें नवाजा जा चुका है। ६ साल की उम्र में ही पिता डॉ. मोहम्मद ऐजाज खान ने प्रशिक्षण प्रारम्भ कर दिया था। पिता भी मार्शल आर्ट के प्रशिक्षक हैं तो इन्हें सीखने में ज्यादा समय नहीं लगा। 6 वर्ष की उम्र से कराते खेल में जिला राज्य स्तर पर पदक प्राप्त कर राष्ट्रीय प्रतियोगिताओ में प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। कूडो खेल में भी राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर सागर को गौरांवित कर चुकी हैं। खेल के साथ साथ पढ़ाई में भी ध्यान देती हैं। अपनी कक्षा के टॉपर्स में इनकी गिनती होती है।
शहर की दीवारों को सुंदर बनाने की पेंटिंग
नेहा श्रीवास्तव कैनवास पर पेटिंग करने में बचपन से माहिर है। उन्होंने अपना हुनर शहर में ही दिखाया। शहर को स्वच्छ रखने के लिए नेहा ने दीवारों में लोककलाओं की पेंटिंग की है। नेहा ने बताया कि पिता रमेशचंद्र श्रीवास्तव १८ साल पहले ही नहीं रहे। उसके बाद मां ने पिता की भूमिका निभाई। मां पुष्पा श्रीवास्तव ने हमें वो करने कहा जिसमें रूची हो। उन्होंने बताया कि वो वॉल, पोस्टर और वाटर कलर पेटिंग करती हैं। इसकी प्रदर्शनी भी लगाई गई हैं। बालरंग, यूथ फेस्टिवल भोपाल, प्रतिभा खोस संस्थान उज्जैन के कार्यक्रमों विजेता रही हैं।

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