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गुरु पूर्णिमा महोत्व पर धार्मिक आयोजन, प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा, की गुरु वंदना

locationसागरPublished: Jul 27, 2018 05:40:13 pm

जिलेभर में गुरुपूर्णिमा महोत्सव पर शहर सिहत ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजन किए जा रहे हैं।

Guru poornima mahotsav

Guru poornima mahotsav

सागर. जिलेभर में गुरुपूर्णिमा महोत्सव पर शहर सिहत ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजन किए जा रहे हैं।
बंडा नगर में चल रहे गुरु पूर्णिमा महोत्सव कार्यक्रम का गुरुवार को समापन हुआ। इस अवसर पर लक्ष्मीनारायण भगवान, राधाकृष्ण, हनुमान जी सहित अन्य देवों की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। किशोरदास महाराज द्वारा श्रीभक्त माल कथा का रसपान कराया गया। विभिन्न राज्यों से आए शिष्यों ने गुरु वंदना की। महोत्सव में नगर के मंडी परिसर में विशाल भंडारे का आयोजन किया। व्यवस्था बनाए रखने के लिए थाना प्रभारी सतीश सिंह द्वारा पुलिस बल तैनात किया गया था।
वहीं शाहपुर में श्रीश्री 1008 श्री सिद्धधाम बाबा मंदिर परिसर में महाराज ओमप्रकाश द्वारा धार्मिक आयोजन किए जा रहे हैं। संत श्री 108 महंत विनय दास अयोध्या ने गुरु महिमा का महत्व बताया। बंडा के पंडित मनोज दुबे ने महाभारत की कथा में भीष्म चरित्र का वर्णन किया। शादी घर मंगल भवन में 2 से 5 बजे तक किया जा रहा है।
खैजरा दरबार व विसनपार में आयोजन आज
उधर, राहतगढ़ में गुरुधाम खैजरा दुगाहा महाकाल दरबार में ब्रह्मलीन संत दद्दा जी की समाधि स्थल पर गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विशेष पूजन का आयोजन किया गया। शिष्य मंडल द्वारा यज्ञ आहुति के साथ प्रसादी का वितरण किया जाएगा। वहीं राहतगढ़ सिद्ध क्षेत्र विसनपार में ब्रह्मलीन संत त्यागी महाराज की कुटिया पर भी शुक्रवार को सुबह से ही भक्तों द्वारा श्रद्धा के साथ गुरुजी का पूजन किया जाएगा। अखंड श्रीराम धुन संकीर्तन, यज्ञ आहुति के साथ भंडारा भी होगा।

यह है गुरु पूर्णिमा का महत्व
आषाढ़ मह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे। शास्त्रों में गु का अर्थ बताया- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान का निवारण कर देता है। अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है।

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