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१३ लाख का था टेंडर, ४० लाख में किया काम, लेकिन स्थिति जस की तस

locationसागरPublished: Aug 24, 2019 09:42:17 pm

-बीएमसी के सीवरेज मैनटेनेंस का मामला, लाखों रुपए खर्च होने के बाद भी पीडब्ल्यूडी विभाग नहीं सुधार पाई मैनलाइन
 

१३ लाख का था टेंडर, ४० लाख में किया काम, लेकिन स्थिति जस की तस

१३ लाख का था टेंडर, ४० लाख में किया काम, लेकिन स्थिति जस की तस

सागर. बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज (बीएमसी) में कुछ भी हो रहा है और जिम्मेदार आंखें मूंदकर बैठे हुए हैं। सीवरेज की मरम्मत का काम जो १३ लाख रुपए में होना था उसे पीडब्ल्यूडी विभाग ने ४० लाख रुपए खर्च करने के बाद भी पूरा नहीं किया है। इधर, सीवरेज की स्थिति जस की तस बनी हुई है। अभी भी मैन लाइन का काम होना बाकी है। चैंबर चोक होने से अस्पताल से निकलने वाला दूषित पानी इटीपी प्लांट तक नहीं पहुंच रहा है। यह पानी पाइप लाइनों में भरा हुआ है। बता दें कि पीडब्ल्यूडी विभाग ने अपने सर्वे में २०० चैंबर चिंहित किए थे और जब काम शुरू किया तो चैबरों की संख्या २०० की जगह ७५० मिली। इसके बाद ठेकेदार ने काम बीच में ही बंद कर दिया।

-चैंबर बनाए, लेकिन नहीं लगाए ढक्कन

परिसर में जगह-जगह चैंबर बने हुए हैं। ठेकेदारों ने इनका निर्माण कुछ इस तरह किया है कि हल्की सी ठोकर में यह क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। मरम्मत के नाम पर चैंबर के ऊपरी हिस्से में ईंट और सीमेंट का उपयोग कर ऊंचाई बढ़ाई गई है। लेकिन खासबात यह है कि उनको ढकने के लिए ढक्कन नहीं लगाए गए हैं। कुछ दिनों पहले ७ लाख रुपए में कुछ चैंबर बनाए गए हैं। बताया जाता है कि ३३ लाख रुपए का भुगतान भी प्रबध्ंान ने कर दिया है।

-जमकर हुआ फर्जीवाड़ा

अस्पताल, बॉयज-गल्र्स, गेस्ट हाउस आदि जगहों में चैंबरों की संख्या ७०० है। इन सभी की मरम्मत का काम किया जाना था। लेकिन महज ५० से ६० चैंबर ही बनाए गए हैं। अन्य साफ करके यह बताया गया कि इनकी मरम्मत की गई है। गल्र्स हॉस्टल के लिए ८ इंची की पाइप लाइन बिछाई गई है। यह पाइप लाइन प्लास्टिक की है। हॉस्टल और अस्पताल के अंदर चैंबर का कोई काम नहीं हुआ है। कई चैंबर एेसे हैं, ओवर फ्लो होने पर पानी को रिवर्स कर रहे हैं। इससे पानी पाइप लाइनों में वापस लौट रहा है। कुल मिलाकर पूरे चैंबर चालू नहीं हुए हैं और इस काम के लिए ३३ लाख रुपए ठेकेदार ने वसूल भी कर लिए हैं।

-८ लाख लीटर पानी निकलता है

बीएमसी में ८ लाख लीटर पानी के स्टोर की क्षमता है। प्रतिदिन ढाई लाख लीटर पानी निकलता है, लेकिन ६० फीसदी दूषित पानी इटीपी प्लांट तक नहीं पहुंच पा रहा है। यह पानी पाइप लाइनों में फंसा हुआ है। इस वजह से इटीपी प्लांट का उद्देश्य भी पूरा नहीं हो पा रहा है। हैरानी की बात यह है कि जिम्मेदारों ने बगैर जांच कराए ठेकेदार का भुगतान भी कर दिया है।

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