-चैंबर बनाए, लेकिन नहीं लगाए ढक्कन
परिसर में जगह-जगह चैंबर बने हुए हैं। ठेकेदारों ने इनका निर्माण कुछ इस तरह किया है कि हल्की सी ठोकर में यह क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। मरम्मत के नाम पर चैंबर के ऊपरी हिस्से में ईंट और सीमेंट का उपयोग कर ऊंचाई बढ़ाई गई है। लेकिन खासबात यह है कि उनको ढकने के लिए ढक्कन नहीं लगाए गए हैं। कुछ दिनों पहले ७ लाख रुपए में कुछ चैंबर बनाए गए हैं। बताया जाता है कि ३३ लाख रुपए का भुगतान भी प्रबध्ंान ने कर दिया है।
-जमकर हुआ फर्जीवाड़ा
अस्पताल, बॉयज-गल्र्स, गेस्ट हाउस आदि जगहों में चैंबरों की संख्या ७०० है। इन सभी की मरम्मत का काम किया जाना था। लेकिन महज ५० से ६० चैंबर ही बनाए गए हैं। अन्य साफ करके यह बताया गया कि इनकी मरम्मत की गई है। गल्र्स हॉस्टल के लिए ८ इंची की पाइप लाइन बिछाई गई है। यह पाइप लाइन प्लास्टिक की है। हॉस्टल और अस्पताल के अंदर चैंबर का कोई काम नहीं हुआ है। कई चैंबर एेसे हैं, ओवर फ्लो होने पर पानी को रिवर्स कर रहे हैं। इससे पानी पाइप लाइनों में वापस लौट रहा है। कुल मिलाकर पूरे चैंबर चालू नहीं हुए हैं और इस काम के लिए ३३ लाख रुपए ठेकेदार ने वसूल भी कर लिए हैं।
-८ लाख लीटर पानी निकलता है
बीएमसी में ८ लाख लीटर पानी के स्टोर की क्षमता है। प्रतिदिन ढाई लाख लीटर पानी निकलता है, लेकिन ६० फीसदी दूषित पानी इटीपी प्लांट तक नहीं पहुंच पा रहा है। यह पानी पाइप लाइनों में फंसा हुआ है। इस वजह से इटीपी प्लांट का उद्देश्य भी पूरा नहीं हो पा रहा है। हैरानी की बात यह है कि जिम्मेदारों ने बगैर जांच कराए ठेकेदार का भुगतान भी कर दिया है।