घरों तक नल-जल सुविधा नहीं पहुंचने के चलते पानी लेने दूर तक जाना पड़ता है। इसलिए पुरुषों के साथ ही महिलाएं भी हैंडपंपों के नजदीक सड़क पर ही नहाते हुए दिख जाती हैं। महिलाओं का कहना है कि चाहती तो वह भी नहीं कि सड़क पर नहाएं लेकिन सबके लिए पानी ढोया नहीं जा सकता। इसके अलावा भी कई अन्य समस्याओं का सामना महिलाओं को करना पड़ता है।
मूलभूत समस्याओं का हल तो आगे चलकर होने की संभावनाएं हैं लेकिन आदर्श गांव के लिए लोगों में जागरुकता कायम नहीं की जा सकी है। समाज की कुरीतियां पहले की तरह ही बनी हैं, कम होने के बजाय इसमें बढ़ोत्तरी भी हुई है। मादक पदार्थों की बिक्री तेज हो गई है, गांव में युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक में नशे की प्रवृत्ति बढ़ी है। सायं के समय कई जगह समूहों में बैठकर गांजा सहित अन्य नशे का सेवन करते हुए लोग दिख जाते हैं। इसके लिए प्रयास भी हुए थे, रीवा से चिकित्सकों एवं मनोवैज्ञानिकों की टीमें भेजकर नशे के दुष्प्रभाव के बारे में बताया गया लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। सांसद जनार्द मिश्रा भी मानते हैं कि लोगों को जागरुक करने में अपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं मिली।
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आदर्श गांव बनने से तेजी के साथ विकास हुआ है। करीब सवा करोड़ से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है। सांसद जी ने ६५ लाख से अधिक की राशि मुहैया कराई है। मूलभूत सुविधाएं तो दे रहे हैं, अभी सड़क-नाली सहित अन्य जरूरतों को पूरा करना है। लोगों की सोच जरूर हम नहीं बदल पा रहे हैं।
राम सिंह, सरपंच हरदुआ
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गांव को आदर्श बनाने के दावे तो किए गए थे लेकिन बाद में नेताओं द्वारा आरोप-प्रत्यारोप शुरू हुआ जिससे गांव का विकास अवरुद्ध हो गया। जिस तरह से गांव को समय देना चाहिए, सांसद जी नहीं दे पाए। कई बार आए जरूर लेकिन भाषण देकर चले गए। अब भी मूलभूत सुविधाओं के लिए हम परेशान हैं।
रामाधार सिंह, स्थानीय निवासी
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उपचार के लिए सेमरिया या फिर रीवा जाना पड़ता है। शिक्षा की कोई बेहतर व्यवस्था दे नहीं पाए। आवारा पशुओं का आतंक ऐसा है कि पूरी खेती चट कर जाते हैं। शुरुआत में लगा था कि हम जहां भी बताएंगे कि आदर्श गांव के रहने वाले हैं तो लोग सम्मान देंगे लेकिन बदहाली ही इसकी पहचान हो गई है।
रामू आदिवासी, स्थानीय निवासी
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रामचरण साकेत, स्थानीय निवासी
स्कूल तो पढऩे के लिए दसवीं कक्षा तक है लेकिन यहां पढ़ाई का स्तर बहुत ही कमजोर है। स्कूलों के शिक्षक नौकरी पूरी करने के लिए सुबह से सायं तक ड्यूटी करते हैं। ११वीं से पढ़ाई के लिए सेमरिया या फिर रीवा ही सहारा होता है। वहीं मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था भी अब तक नहीं सुधर पाई है। कई बार इसकी शिकायतें लेकर ग्रामीण कलेक्टर के पास तक पहुंचे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि न तो पढ़ाई का स्तर सुधरा है और न ही मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था। ४० बच्चों के बीच बनने वाले भोजन में दो किलो आलू की सब्जी बनाने की शिकायतें की गई हैं।
हरदुआ गांव में आवारा मवेशियों की समस्या अब तक नहीं सुधरी है। खेतों में ये फसलें नष्ट कर रहे हैं तो सड़कों पर भी डेरा जमाए रहते हैं। स्कूल परिसर का मैदान इनके ठहरने की जगह बन गया है। स्कूल के बच्चे इन जानवरों के बीच ही खेलते हैं। कुछ दूर पर ही बसामन मामा में गौ अभयारण्य बनाया गया है लेकिन वहां पर मवेशियों को नहीं लिया जा रहा है, जिसके चलते फसलों को ये नष्ट कर रहे हैं। कई किसानों ने तो कहा है कि खेती ही नहीं बोए हैं।
उचित मूल्य की दुकान से वितरित होने वाले राशन को लेकर भी बड़ी समस्या है। सैकड़ों की संख्या में हर महीने लोग सस्ता अनाज पाने से वंचित हो जाते हैं। वितरण कार्य से जुड़े कर्मचारियों द्वारा हर महीने अड़ंगे लगाए जाते हैं।