अब नगरीय प्रशासन विभाग ने रीवा सहित अन्य निकायों से जानकारी मांगी है कि कितनी संख्या में मोबाइल टॉवर शहर में लगाए गए हैं और मानव स्वास्थ्य के लिए कितना नुकसान दायक हैं, इसका पूरा आकलन कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है।
अब नगर निगम क्षेत्र के सभी मोबाइल टॉवरों की जानकारी जुटाई जानी है। इसके पहले भी आयोग की ओर से शासन को कहा जाता रहा है कि मोबाइल टॉवर लगाने से पहले इस बात की तस्दीक कराई जाए कि इसके रेडिएशन से मानव जीवन को कोई खतरा उत्पन्न नहीं हो। पूर्व में कई याचिकाएं भी कोर्ट में लगाई गई थी कि शहरों में आवासीय कालोनियों से दूर मोबाइल टॉवर लगाए जाएं। इसमें रीवा और सतना के भी मामले शामिल थे।
विनियामक नीति की अनदेखी कर रहे निकाय
नगर निगम सहित जिले के सभी नगरीय निकाय शासन के उस निर्देश का पालन नहीं कर रहे हैं, जिसमें मोबाइल टावरों के लिए शर्तें निर्धारित की गई थी। प्रदेश सरकार ने विनियामक प्रक्रिया नीति २०१३ बनाई है। निगम द्वारा इसकी शर्तों के विपरीत टॉवर लगाने की अनुमति दी जा रही है। जबकि नियम में टॉवर की फ्रिक्वेंसी के साथ ही उसकी ऊंचाई का भी शर्तें निर्धारित की गई हैं। शर्त यह भी है कि सेवा प्रदाता कंपनी नियमों के विपरीत कार्य करेगी तो दस लाख रुपए तक जुर्माना भी हो सकता है।
नगर निगम सहित जिले के सभी नगरीय निकाय शासन के उस निर्देश का पालन नहीं कर रहे हैं, जिसमें मोबाइल टावरों के लिए शर्तें निर्धारित की गई थी। प्रदेश सरकार ने विनियामक प्रक्रिया नीति २०१३ बनाई है। निगम द्वारा इसकी शर्तों के विपरीत टॉवर लगाने की अनुमति दी जा रही है। जबकि नियम में टॉवर की फ्रिक्वेंसी के साथ ही उसकी ऊंचाई का भी शर्तें निर्धारित की गई हैं। शर्त यह भी है कि सेवा प्रदाता कंपनी नियमों के विपरीत कार्य करेगी तो दस लाख रुपए तक जुर्माना भी हो सकता है।
सार्वजनिक भवनों पर एनओसी की है अनिवार्यता
नगरीय प्रशासन विकास विभाग का पत्र निगम आयुक्त पास है जिसमें कहा गया है कि मोबाइल टॉवर स्थापित करने के लिए जो शर्तें हैं उनका भी परीक्षण किया जाए। एक शर्त यह भी है कि सार्वजनिक भवनों में लगाने से पहले एनओसी जरूरी है। जिस में अस्पताल, शिक्षण संस्थान, संवेदनशील भवन, ऐतिहासिक भवन सहित जनसुविधा से जुड़े स्थानों पर १०० मीटर की परिधि के भीतर उनकी बिना अनुमति नहीं लगाए जा सकेंगे।
नगरीय प्रशासन विकास विभाग का पत्र निगम आयुक्त पास है जिसमें कहा गया है कि मोबाइल टॉवर स्थापित करने के लिए जो शर्तें हैं उनका भी परीक्षण किया जाए। एक शर्त यह भी है कि सार्वजनिक भवनों में लगाने से पहले एनओसी जरूरी है। जिस में अस्पताल, शिक्षण संस्थान, संवेदनशील भवन, ऐतिहासिक भवन सहित जनसुविधा से जुड़े स्थानों पर १०० मीटर की परिधि के भीतर उनकी बिना अनुमति नहीं लगाए जा सकेंगे।
छतों पर मनमानी रूप से लगाए गए हैं टॉवर
शहर में भवनों की छतों पर मोबाइल टॉवर मनमानी रूप से लगाए गए हैं। इसके लिए भी शर्तें निर्धारित की गई हैं लेकिन नगर निगम अनुमति देने से पहले शर्तों का परीक्षण नहीं करता। नियमों में कहा गया है कि टॉवर के एंटीना के सामने बिल्डिंग के ऊंचाई की न्यूनतम दूरी २० से ५५ मीटर तक है। अब ग्राउंड बेस्ड मास्ट मॉडल के टॉवर लगाए जाने के निर्देश हैं। इसकी चौड़ाई तीन मीटर वृत्ताकार है।
शहर में भवनों की छतों पर मोबाइल टॉवर मनमानी रूप से लगाए गए हैं। इसके लिए भी शर्तें निर्धारित की गई हैं लेकिन नगर निगम अनुमति देने से पहले शर्तों का परीक्षण नहीं करता। नियमों में कहा गया है कि टॉवर के एंटीना के सामने बिल्डिंग के ऊंचाई की न्यूनतम दूरी २० से ५५ मीटर तक है। अब ग्राउंड बेस्ड मास्ट मॉडल के टॉवर लगाए जाने के निर्देश हैं। इसकी चौड़ाई तीन मीटर वृत्ताकार है।
शिकायतों की अनदेखी करता रहा है निगम
आवासीय कालोनियों के बीच टॉवर लगाए जाने का लगातार कई वर्षों से लोगों द्वारा विरोध किया जाता रहा है। सैकड़ों की संख्या में निगम कार्यालय में शिकायतें दर्ज हैं। शहर के नेहरू नगर, संजय नगर, कटरा, निपनिया, चिरहुला, पडऱा सहित कई मोहल्लों में लोगों ने बस्ती के बीच टॉवर लगाए जाने का विरोध किया था। इसमें कुछ जगह तो कार्य रोके गए लेकिन कई स्थानों पर निगम अधिकारियों ने शिकायतों की अनदेखी कर दी। नेहरू नगर में स्थानीय लोगों ने पार्क के बीच लग रहे टॉवर को तोड़ डाला था।
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एक्सपर्ट व्यू
इंजीनियरिंग कालेज के प्राध्यापक डॉ. संदीप पाण्डेय बताते हैं कि मोबाइल पर बात करते समय सिंगल वेवलेंग्थ के जरिए सेल टावर से जुड़ता है। जितनी देर तक बात होती है, उतने समय तक हानिकारक तरंगें शरीर और त्वचा को प्रभावित करती हैं। खुले स्थान की तुलना में घर या दफ्तर में यह प्रभाव बढ़ जाता है। कम्प्यूटर, टीवी, रेडियो, हीटिंग-लाइटिंग लैंप, माइक्रोवेवओवन और आसपास से गुजर रही बिजली की लाइनें भी कई सिग्नलों से तरंगें उत्पन्न करती हैं। इनका इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन मोबाइल के रेडिएशन और सेल टावर के सिग्नल से ट्रांसमिट करता है। इससे शरीर पर पडऩे वाला दुष्प्रभाव दोगुना हो जाता है। इस कारण थकावट, सिरदर्द, अनिद्रा, कानों में घंटियां बजने, जोड़ों में दर्द और याददाश्त कमजोर होने जैसी समस्याएं सामने आती हैं।
आवासीय कालोनियों के बीच टॉवर लगाए जाने का लगातार कई वर्षों से लोगों द्वारा विरोध किया जाता रहा है। सैकड़ों की संख्या में निगम कार्यालय में शिकायतें दर्ज हैं। शहर के नेहरू नगर, संजय नगर, कटरा, निपनिया, चिरहुला, पडऱा सहित कई मोहल्लों में लोगों ने बस्ती के बीच टॉवर लगाए जाने का विरोध किया था। इसमें कुछ जगह तो कार्य रोके गए लेकिन कई स्थानों पर निगम अधिकारियों ने शिकायतों की अनदेखी कर दी। नेहरू नगर में स्थानीय लोगों ने पार्क के बीच लग रहे टॉवर को तोड़ डाला था।
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एक्सपर्ट व्यू
इंजीनियरिंग कालेज के प्राध्यापक डॉ. संदीप पाण्डेय बताते हैं कि मोबाइल पर बात करते समय सिंगल वेवलेंग्थ के जरिए सेल टावर से जुड़ता है। जितनी देर तक बात होती है, उतने समय तक हानिकारक तरंगें शरीर और त्वचा को प्रभावित करती हैं। खुले स्थान की तुलना में घर या दफ्तर में यह प्रभाव बढ़ जाता है। कम्प्यूटर, टीवी, रेडियो, हीटिंग-लाइटिंग लैंप, माइक्रोवेवओवन और आसपास से गुजर रही बिजली की लाइनें भी कई सिग्नलों से तरंगें उत्पन्न करती हैं। इनका इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन मोबाइल के रेडिएशन और सेल टावर के सिग्नल से ट्रांसमिट करता है। इससे शरीर पर पडऩे वाला दुष्प्रभाव दोगुना हो जाता है। इस कारण थकावट, सिरदर्द, अनिद्रा, कानों में घंटियां बजने, जोड़ों में दर्द और याददाश्त कमजोर होने जैसी समस्याएं सामने आती हैं।