चंद्रवार, स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न में पांच शुभ ग्रहों के एकत्रित होने पर भाद्र शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न काल में पार्वती के षोड़षोपचार से इनकी पूजा करने से
त्रिनयन गणेश प्रकट हुए।
स्कन्दपुराण के अनुसार
मां पार्वती ने अपने शरीर की उबटन की बत्तियों से एक शिशु बनाकर उसमें प्राणों का संचार कर गण के रूप में उन्हें द्वार पर बैठा दिया। भगवान शिव को द्वार के अन्दर प्रवेश नहीं करने देने पर गण और शिव में युद्ध हुआ। शिवजी ने गण का सिर काट कर द्वार के अंदर प्रवेश किया। पार्वती ने गण को पुन: जीवित करने के लिए शिवजी से कहा। शिवजी ने एक हाथी के शिशु के सिर को गणेश जी के मस्तक पर जोड़कर पुन: जीवित कर पुत्र रूप में स्वीकार किया। इससे ये “गजानंद” कहलाए।
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ये भी पढ़ेः ये हैं गणेशजी की सूंड, लंबे कान और बड़ा पेट का रहस्य!शनि की दृष्टि से कटा गणेश का सिरइसी तरह की एक कथा ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी आती है कि जब गणेश जी का जन्म हुआ तो शिवलोक में उत्सव मनाया जा रहा था। गणेश जी को आशीर्वाद देने के लिए सभी देवी-देवता पधारे, इनमें शनि देव भी शामिल थे। उत्सव से विदा लेते समय शनि महाराज ने भागवान विष्णु, ब्रह्मा और शिव को प्रणाम किया। शनि देव ने सबसे अंत में देवी पार्वती को प्रणाम किया और गणेश जी को देखे बिना ही आशीर्वाद देकर जाने लगे। इस पर देवी पार्वती ने शनि महाराज को टोकते हुए कहा कि शनि महाराज आप मेरे पुत्र को बिना देखे क्यों जा रहे हैं।
शनि महाराज ने कहा कि माता मेरा नहीं देखना ही मंगलकारी है। अगर मेरी दृष्टि गणेश जी पर पड़ी तो भारी अमंगल होगा। देवी पार्वती ने शनि महाराज को ताना मारते हुए कहा कि तुम मेरे पुत्र के जन्म से प्रसन्न नहीं हो इसलिए बहाने बना रहे हो। मेरी आज्ञा है कि तुम मेरे पुत्र को देखो, कुछ भी अमंगल नहीं हो।
देवी पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए जैसे ही शनि महाराज ने गणेश जी को देखा शिवलोक में हहाकार मच गया। गणेश जी का सिर कट कर हवा में विलीन हो गया। इस दृष्य को देखकर देवी पार्वती बेहोश हो गई। ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु ने एक हथिनी के नवजात बच्चे का सिर काटकर गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया और गणेश जी गजानन कहलाने लगे।
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ये भी पढ़ेः हर बुधवार गणेशजी फोन पर सुनते हैं प्रार्थना, क्या आपने बात कीइस शाप की वजह से बने थे गणेशजी गजाननपुराणों की एक कथा के अनुसार माली और सुमाली नाम के दो दैत्य भगवान शिव के भक्त थे। शिव भक्ति के प्रभाव से यह शक्तिशाली हो गए थे और देवताओं को परेशान करने लगे थे। इससे भगवान सूर्य ने माली और सुमाली से युद्ध किया। भगवान शिव जो जब पता चला कि सूर्य उनके भक्तों को मारने पर तुले हैं तो क्रोधित हो उठे और त्रिशूल से सूर्य पर प्रहार कर दिया।
सूर्य देव इससे अचेत होकर गिर पड़े। सूर्य देव के पिता कश्यप ऋषि ने जब देखा कि भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उनके पुत्र को मृत्यु के करीब पहुंचा दिया है तो क्रोधित होकर शिव जी को शाप दे दिया। कश्यप ने कहा कि, जिस प्रकार मेरे पुत्र को आपने मृत्यु के करीब पहुंचा दिया है उसी प्रकार आपको भी अपने पुत्र की दुर्दशा देखनी होगी। इस शाप के कारण ही गणेश जी का सिर कटा और गजमुख बने।