तथा छह कहानियों की कथा सुनी जाती है।
पोता मारकर आशीर्वाद
खमरछठ के दिन व्रती महिलाएं पूजन के बाद अपने संतान की पीठ व कमर के पास पोता मारकर उन्हें सुखद भविष्य का आशीर्वाद देंगी। पोता के लिए नए कपड़े के टुकड़े का उपयोग किया जाएगा। उसे हल्दी पानी से भिगाते हुए बच्चों के पीठ पर हल्की थपकी देकर माताएं अपने आंचल से पोंछेंगी। यही माता के द्वारा दिया गया रक्षा कवच का प्रतीक है। बच्चों को प्रसाद के रूप में लाई, महुआ आदि दिया जाएगा।
यह है कथा का सार
व्रत को लेकर पौराणिक कथा है कि वासुदेव देवकी के 6 बेटों को एक एक कर कंस ने कारागार में मार डाला था। जब सातवें बच्चे के जन्म का समय नजदीक आया तो देवर्षि नारद ने देवकी को हलषष्ठी देवी का व्रत रखने की सलाह दी। देवकी ने इस व्रत को सबसे पहले किया, जिसके प्रभाव से उनके आने वाले संतान की रक्षा हुई। सातवें संतान के रूप में बलराम तथा आठवें संतान के रूप में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया और हलषष्ठी माता की कृपा से उनकी कंस से रक्षा हुई। हलषष्ठी का पर्व भगवान कृष्ण व बलराम से संबंधित है। हल से कृषि कार्य किया जाता है, जो बलराम का प्रमुख हथियार भी है। यही वजह है कि हलषष्ठी व जन्माष्टमी एक दिन के अंतराल में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।