राजनीति ने बांट दिया देश को
सत्र राम मंदिर कितनी हकीकत, कितना फसाना। मन, मंशा और मिशन में मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के पड़पौते प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तुशी, धनेशमणि त्रिपाठी, डॉ.कुमार गणेश के बीच संवाद हुआ। जिसका संचालन जय आहूजा ने किया। प्रिंस तुशी ने कहा कि न्यायालय के आदेश के अनुसार अगर अयोध्या में विवादित रामलला की भूमि हमारे स्वामित्व की है तो उसे राम मंदिर निर्माण के लिए मैं स्वयं राष्ट्र को भेंट करूंगा और पहली ईंट अपने हाथों से लगाऊंगा। यदि कोर्ट का निर्णय निर्मोही अखाड़े के पक्ष में जाता है तो भी मैं अयोध्या के मुस्लिमों को राम मंदिर के निर्माण के लिए सहमत करूंगा। अभी जिस भूमि पर विवाद है वहां नमाज पढ़ी ही नहीं जा सकती। इस मामले में राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए ही मामले को तूल दिया गया है। रामलला के स्थान पर मन्दिर और परिक्रमा के बाहर मस्जिद बनने पर दोनों पक्षों में सहमति बनी थी लेकिन वोटों की फसल काटने के लिए उसे विवादित रंग दिया गया और राष्ट्रीय सामाजिक हित को धार्मिक रूप दे दिया गया। राम मंदिर निर्माण राष्ट्र के अस्तित्व का विषय है लेकिन राजनीति ने देश को ही बांट दिया है।
राजनीति में धर्म का इस्तेमाल कितना सही कितना गलत सत्र में राज्य वित्त आयोग की अध्यक्ष डॉ.ज्योति किरण शुक्ला और अन्य शख्सयितों ने परिचर्चा की। डॉ.ज्योति ने कहा कि धर्म वह है जो कि हम धारण करते हैं। राजनीति को यदि धर्म से जोड़कर देखा जाए तो उसमें सिर्फ पूजा पद्धति को ही नहीं बल्कि कर्तव्यों को भी जोड़ा जाना चाहिए। गीता-पुराण, शाश्वत सत्य सत्र में गीता की व्याख्या करते हुए आज के संदर्भ में गीता के प्रसंगों और उपदेशों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। टेरो, अंक शास्त्र, तंत्र-मंत्र एक वैज्ञानिक व्याख्या में विद्धानों ने परस्पर संवाद में टोना टोटका और तंत्र पर बात की।