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सिंगरौली में कचरा प्लांट बना मुसीबत: बदबू ने किया जीना मुहाल, लोग पलायन को मजबूर

locationसिंगरौलीPublished: Sep 04, 2018 05:54:31 pm

Submitted by:

suresh mishra

दर्जन भर परिवार संक्रामक बीमारियों की चपेट में, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 का पालन नहीं

Garbage Plant in Singrauli

Garbage Plant in Singrauli

सिंगरौली। शहर के बीचोबीच वार्ड क्रमांक-41 के गनियारी बस्ती में कचरा प्लांट मुहल्लेवासियों के लिए मुसीबत बन चुका है। नौबत यह कि लोग घर बेचकर पलायन करने को मजबूर हो गये हैं। मौजूदा वक्त में दर्जनभर परिवार डायरिया, वायरल फीवर, मलेरिया जैसी संक्रामक बीमारियों की चपेट में आ चुका है। गंदगी के चलते मच्छरों और मक्खियों की बाढ़ सी आ गई है। पत्रिका टीम सोमवार को कचरा प्लांट के आसपास रह रहे लोगों की पीड़ा समझने की कोशिश की।
बताया कि अब यहां रहने लायाक नहीं है। लोगों में सबसे ज्यादा गुस्सा नगर निगम प्रशासन के रवैया को लेकर था। आरोप है कि नगर निगम कभी भी दवाओं का छिड़काव नहीं कराता है। सड़े कचरे की बदबू मरे जानवरों की तरह फैली रहती है। अब तो पानी भी प्रदूषित हो चुका है। सच तो यह कि शहरी कचरे का पहाड़ मुसीबत बन चुका है। मतलब, यह कि डेढ़ हजार की आबादी पूरी तरह से प्रभावित है।
मरे जानवरों की तरह बदबू

मोहल्ला के बीचों-बीच हजारों टन शहरी कचरा सड़ रहा है। सड़े कचरे से आसपास के क्षेत्रों में मरे जानवरों की तरह बदबू आ रही है। मच्छरों और मक्खियों की भरमार सी हो गई है। मौजूदा वक्त में कचरा प्लांट बस्ती के बीचोबीच खड़ा है। कचरे से रोजाना निकलने वाला कई लीटर लिचेट से आसपास के इलाके की मिट्टी व भू-जल दूषित होने की आशंका बढ़ गई है। खासकर बरसात के दिनों में तो उस क्षेत्र में मक्खियों की तादाद बढ़ जाती है। आसपास के लोग संक्रामक बीमारियों के शिकार बन रहे हैं। प्लांट से निकलने वाली बदबू से आसपास के लोग परेशान हैं। कूड़ा कंप्रेस के दौरान निकलने वाली लिचेट से नीचे गिरकर मिट्टी में मिल रही है।
ट्रैंचिंग ग्राउण्ड के लिए जमीन तलाश रहा निगम
शहर के बीच कचरा प्लांट होने की वजह से आसपास की मिट्टी व भू-जल प्रदूषित होने की आशंका बढ़ गई है। कचरे से निकलने वाले लिचेट से प्रदूषण का खतरा बढ़ गया है। स्वच्छता विशेषज्ञ अमित सिंह की मानें तो लिचेट से मिट्टी व जलस्रोत दोनों को खतरा है। इसीलिए नगर निगम प्रशासन कचरे की ट्रैंचिंग ग्राउण्ड के लिए २५ एकड़ जमीन सालभर से तलाश रहा है। सूत्रों की मानें तो रंपा गांव में 25 एकड़ सरकारी जमीन खाली पड़ी है। जिसके लिए जिला प्रशासन से नगर निगम गुहार लगाया है।
सबसे बड़ी चुनौती
कचरे के संग्रहण, निष्कासन और साइंटिफिक लैंड फीलिंग की व्यवस्था नगर निगम प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनती जा रही है। जिला मुख्यालय से ही रोजाना करीब ५०-६० टन कचरा निकल रहा है। सही तरीके से उसका निस्तारण न होने से समस्या खड़ी होती जा रही है। कचरा प्लांट खराब हुए दो महा के आसपास हो गये है। तभी से खाद बनाने की प्रक्रिया ठप पड़ी है।
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की नहीं हो रही पालना
दो दिन पहले देश की सर्वोच्च न्यायालय ने मप्र, हरियाणा, चंडीगढ़, उत्तराखंड आदि राज्य सरकारों को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 का पालन न करने पर कड़ी फटकार लगाया था। शीर्ष कोर्ट ने ऐसे राज्यों में निर्माण कार्यों पर रोक लगाने का आदेश दे दी है। कोर्ट का कहना है कि इन राज्योंमें सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 का पालन नहीं किया जा रहा है। जिसे जनता की सेहत खतरे में पड़ गई है। जी हां, रूल 2016 के अनुसार, कचरा प्लांट में साइंटिफिक लैंड फिल साइट का निर्माण किया जाना चाहिए। पर्यावरण सुरक्षा के मद्देनजर लिचेट टैंक का निर्माण किया जाना चाहिए। प्लांट से पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। सूख व गीला कचरे को अलग-अलग रखने की व्यवस्था होनी चाहिए। सच तो यह कि यहां इस तरह की व्यवस्था नहीं है।
मकान बेचने को मजबूर
छोटू सोनी के मकान कचरा प्लांट के पास में ही है। बदबू से परेशान छोटू अब अपना मकान बेचकर दूसरी जगह घर ले रहे हैं। उन्होंने पत्रिका को बताया कि कचरे की बदबू से अब यहां रहना मुश्किल हो गया है। इसी तरह की बात पेशे से शिक्षक अलख देव ने बताया कि दूसरी जगह घर खरीदने का विचार है। ललन सिंह ने बताया कि बच्चे रोज बीमार हो रहे हैं। कचरे की वजह से भू-जल प्रदूषित हो गया है। पानी का स्वाद भी बदल गया है। सतेन्द्र सिंह ने बताया कि परिवार में रोजाना कोई न कोई बीमार ही रहता है। गजरूप गुप्ता ने बताया कि आएदिन लोग डायरिया, पीलिया जैसी संक्रामक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। पप्पू साहू ने बताया कि इस मुहल्ले के बच्चे बीमारी के चलते कई -कई दिन तक स्कूल नहीं जा रहे हैं। पिंकी शाह ने बताया कि मेरेा बेटा कई दिनों से बीमार है।
कचरे का संग्रह व निस्तारण सबसे बड़ी समस्या है। ट्रैंचिंग ग्राउण्ड के लिए जमीन की तलाश की जा रही है। जानकारी के अनुसार, रंपा गांव में 25 एकड़ जमीन सरकारी पड़ी है। उम्मीद है कि बात बन जाने के बाद उसी जमीन पर कचरे की ट्रैचिंग की जाएगी। ट्रैचिंग के बाद प्रदूषण जैसी समस्या सुलझ जाएगी। जमीन मिलने के बाद कचरा संग्रह, निष्पादन और साइंटिफिक लैंड फीलिंग की व्यवस्था की जाएगी।
-शिवेंद्र सिंह, आयुक्त
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