script

विचार मंथन : मरेंगे तो सभी- साधु, असाधु, धनी या दरिद्र- किसी का शरीर नहीं रहेगा, इसलिए उठो, जागो और मंजिल की ओर चल पड़ों… स्वामी विवेकानंद

Published: Sep 11, 2018 06:45:01 pm

Submitted by:

Shyam Shyam Kishor

हे युवाओं मानव – देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, इसका सदुपयोग करों ।
स्वामी विवेकानन्द

Vichar Manthan

विचार मंथन : सभी मरेंगे- साधु, असाधु, धनी या दरिद्र- किसी का शरीर नहीं रहेगा, इसलिए उठो, जागो और मंजिल की ओर चल पड़ों… स्वामी विवेकानंद

1- जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो– उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो । दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो । सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है ।


2- तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओं । जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते ।


3- ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्थि कर सकता है । सभी जीवंत ईश्वर हैं– इस भाव से सब को देखो । मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवन्त काव्य हैं । जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं । इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे । तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो । ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।


4- मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं–निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है ।


5- जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।


6- जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं । इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है– अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है ।


7- आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है । उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो ।


8- मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है ? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते । सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुँचाता है । इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं । हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है ।


9- मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी । यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय । एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो । ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा । जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है । पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो ।


10- सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र- सभी मरेंगे । चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा । अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ । भारत में घोर कपट समा गया है । चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके ।


-स्वामी विवेकानन्द

ट्रेंडिंग वीडियो