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विचार मंथन : जिसमें लज्जा, घृणा और भय ये तीनो चीजे है, वो कभी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता- रामकृष्ण परमहंस

locationभोपालPublished: Nov 18, 2018 04:39:28 pm

Submitted by:

Shyam

जिसमें लज्जा, घृणा और भय ये तीनो चीजे है, वो कभी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता- रामकृष्ण परमहंस

Daily Thought Vichar Manthan

विचार मंथन : जिसमें लज्जा, घृणा और भय ये तीनो चीजे है, वो कभी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता- रामकृष्ण परमहंस

परमहंस जी एक दिन ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के घर पर उनसे मिलने गये । भेंट होने पर कहा- आज तो मैं सागर में आ मिला, इतने दिन खाई, सोता और अधिक से अधिक हुआ तो नदी देखी थी, पर अब सागर देख रहा हूँ । विद्यासागर ने कहा- ‘तो इससे लाभ क्या हुआ, थोड़ा- सा खास पानी मिल जायेगा । परमहंस जी बोले नहीं जी, खारा पानी क्यों..? तुम तो अविद्या के नही विद्या के सागर हो, तुम क्षीर – समुद्र हो । तुम्हारा कर्म सात्विक कर्म है । यह सब सत्व का रजोगुण है, सत्वगुण से दया होती है, दया से जो कर्म किया जाता है वह राजसिक कर्म हो सकता है, पर फिर भी वह सत्वगुण से सम्बन्धित है इसलिये उसमें कोई दोष नहीं बतला सकता । तुम विद्यादान, अन्नदान कर रहे हो यह भी अच्छा है । यह कर्म निष्काम भाव से करने से ईश्वर लाभ होगा ।

 

ईश्वर सभी इंसानों में है लेकिन सभी इंसानों में ईश्वर का भाव हो ये जरुरी हो नही है, इसलिए हम इन्सान अपने दुखो से पीड़ित है । ईश्वर दुनिया के हर कण में विद्यमान है और ईश्वर के रूप को इंसानों में आसानी से देखा जा सकता है इसलिए इंसान की सेवा करना ईश्वर की सच्ची सेवा है । जब तक हमारे मन में इच्छा है, तब तक हमे ईश्वर की प्राप्ति नही हो सकती है । जब फूल खिलता है तो मधुमक्खी बिना बुलाये आ जाती है ठीक इसी प्रकार जब हम प्रसिद्ध होंगे तो लोग बिना बताये हमारा गुणगान करने लगेगे । पानी और उसका बुलबुला एक ही चीज है उसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा एक ही चीज है अंतर केवल यह है कि एक परीमीत है दूसरा अनंत है एक परतंत्र है दूसरा स्वतंत्र है ।

 

जिसने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया उस पर काम और लोभ के विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । अगर तुम पूर्व की ओर जाना चाहते हो तो पश्चिम की ओर मत जाओ । दुनिया वास्तव में सत्य और विश्वास का एक मिश्रण है । जिस व्यक्ति में लज्जा, घृणा और भय आदि ये तीनो चीजे हैं, वो कभी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता या भगवान की द्रष्टि उस पर नहीं पड़ सकती । वह मनुष्य व्यर्थ ही पैदा होता है, जो बहुत कठिनाईयों से प्राप्त होने वाले मनुष्य जन्म को यूँ ही गवां देता हैं और अपने पुरे जीवन में भगवान का अहसास करने की कोशिश ही नहीं करता । जिस प्रकार गंदे शीशे पर सूर्य की रौशनी नही पड़ती ठीक उसी प्रकार गंदे मन वालो पर ईश्वर के आशीर्वाद का प्रकाश नही पढ़ सकता ।

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