नये संसार का निर्माण वर्तमान की अपेक्षा किसी भिन्न प्रकार के साधनों और तत्वों से ही होगा । इस समय बाहरी चीजों का ही ज्यादा महत्व है, जबकि नये युग में आन्तरिक शक्तियों की ही प्रधानता होगी । इसलिये इस समय बाहरी वस्तुओं की दुर्दशा हो रही है- उनमें दोष उत्पन्न होकर वे नष्ट होती जाती हैं, उस पर अधिक ध्यान देने या उनके लिये दुखी होने की आवश्यकता नहीं । इसके बजाय हमको अपनी आत्मिक शक्तियों के विकास का उपयोग करते रहना चाहिये जिससे नये युग में उसके अनुकूल रूप में प्रस्तुत हो सकें- उसके उपयुक्त बन सकें, ऐसा ही वातावरण भी निर्माण करने के लिए अभी से ही कुछ दिव्य एवं जागृत आत्माओं को नींव रखनी पड़ेगी, भरपूर प्रयास भी करने पड़ेंगे, तब जाकर नये संसार का निर्माण संभव होगा । ”
-महायोगी महर्षि अरविन्द