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विचार मंथन : महाकाल की तरह विष को अमृत बनाकर पीने की आदत डालों, फायदे में रहोगे- डॉ. प्रणव पंड्या

locationभोपालPublished: Jun 19, 2019 03:57:49 pm

Submitted by:

Shyam Shyam Kishor

धन ऐश्वर्य को तलाश करने के लिए तुम्हें बाहर ढूंढ़ खोज करने की जरूर ही क्या- डॉ. प्रणव पंड्या

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विचार मंथन : महाकाल की तरह विष को अमृत बनाकर पीने की आदत डालों, फायदे में रहोगे- डॉ. प्रणव पंड्या

तो एक काम करो

शायद तुम्हारा मन अपने दुस्स्वभावों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता। काम, क्रोध, लोभ और मोह के चंगुल में तुम जकड़े हुए हो और जकड़े ही रहना चाहते हो तो एक काम करो। इन चारों का ठीक ठीक स्वरूप समझ लो। इनको ठीक तरह प्रयोग में लाना सीख लो, तो तुम्हारा काम चल जायेगा।

 

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धन ऐश्वर्य को तलाश करने के लिए

कामना करना कोई बुरी बात नहीं है अब तक तुम गुड़ की कामना करते थे अब मिठाई की इच्छा करो। स्त्री, पुत्र, धन, यश आदि के लाभ छोटे, थोड़े नश्वर और अस्थिर है, तुम्हें एक कदम आगे बढ़कर ऐसे लाभ की कामना करनी होगी जो सदा स्थिर रहे और बहुत सुखकर सिद्ध हो। धन ऐश्वर्य को तलाश करने के लिए तुम्हें बाहर ढूंढ़ खोज करनी पड़ती है पर अनन्त सुख का स्थान तो बिल्कुल पास अपने अन्तःकरण में ही है। भगवान महाकाल की तरह विष को अमृत बनाकर पीना सीख जाओं फिर देखो कितने फायदे में रहोगे। आओ, हृदय को साफ कर डालो, कूड़े कचरे को हटाकर दूर फेंक दो और फिर देखों कि तुम्हारे अपने खजाने में ही कितना ऐश्वर्य दबा पड़ा है।

 

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खबरदार कर दो कि कोई

अपने विरोधियों पर तुम्हें क्रोध आ जाता है सो ठीक ही है। देखो, तुम्हारे सबसे बड़े शत्रु कुविचार है, ये तेजाब की तरह तुम्हें गलाये डाल रहे हैं और घुन की तरह पीला कर रहे हैं। उठो, इन पर क्रोध करो, इन्हें जी भरकर गालियां दो और जहां देख पाओ वहीं उनपर बसर पड़ो, खबरदार कर दो कि कोई कुविचार मेरे घर न आवें, अपना काला मुंह मुझे न दिखावें वरना उसके हक में अच्छा न होगा।

 

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अपनी पूंजी का आनन्द लें

लोभ- अरे लोभ में क्या दोष? यह तो बहुत अच्छी बात है। अपने लिए जमा करना ही चाहिए इसमें हर्ज क्या है? तुम्हें सुकर्मों की बड़ी सी पूंजी संग्रह करना उचित है, जिसके मधुर फल बहुत काल तक चखते रहो। दूसरे लोग जिन्होंने अपना बीज कुटक लिया और फसल के वक्त हाथ हिलाते फिरेंगे, तब उनसे कहना कि ऐ उड़ाने वालो, तुम हो जो टुकड़े टुकड़े को तरसते हो और मैं हूं जो लोभ के कारण इकट्ठी की हुई अपनी पूंजी का आनन्द ले रहा हूं।

 

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कल नष्ट हो जाने वाली चीजें

मोह अपनी आत्मा से करो, अब भूख लगती है तो घर में रखी हुई सामग्री खर्च करके भूख बुझाते हैं। सर्दी गर्मी से बचने के लिए कपड़ों को पहनते हैं और उनके फटने की परवाह नहीं करते। शरीर को सुखी बनाने के लिए दूसरी चीजों की परवाह कौन करता है? फिर तुम्हें चाहिए कि आत्मा की रक्षा के लिए सारी संपदा और शरीर की भी परवाह न करो। जब मोह ही करना है तो कल नष्ट हो जाने वाली चीजों से क्यों करना? अपनी वस्तु आत्मा है। उससे मोह करो, उसको प्रसन्न बनाने के लिए उद्योग करो।

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