गणेश चतुर्थी पर प्रतिमाओं को विराजित करने लोग तैयारियां पूरी कर रहे हैं। इस संबंध में मान्यता है कि सोमवार को शंकरजी, मंगलवार को हनुमानजी, शनिवार को शनिदेव की पूजा को महत्व दिया जाता है। इसी तरह गणेशजी का दिन बुधवार को माना गया है। बुधवार के दिन घर में गणेशजी की प्रतिमा लाना शुभदायी है। इसके चलते लोग प्रतिमा लाने के शुभ मुहूर्त पर 12 सितंबर को दोपहर 3.30 बजे से शाम 6.30 बजे तक घरों में प्रतिमाएं लाते रहे। वहीं जो नहीं ला पाए उनके लिए 13 सितंबर को सुबह 6.15 से 8.05 बजे तक श्रेष्ठ समय है।
ऐसी मान्यता है कि भादों शुक्ल चतुर्थी तिथि पर चंद्रमा का दर्शन करने से चोरी का कलंक लगता है। इस मान्यता के चलते चतुर्थी तिथि पर चंद्रमा का दर्शन करने की मनाही है। एक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने चतुर्थी तिथि पर चंद्रमा का दर्शन किया था जिसके चलते श्रीकृष्ण पर स्यमन्तक नामक बहुमूल्य मणि की चोरी का कलंक लगा था।
चतुर्थी तिथि दोपहर तक
पंचांग के अनुसार चतुर्थी तिथि 12 सितंबर बुधवार को शाम 4 बजकर 7 मिनट से शुरू होगी और 13 सितंबर को दोपहर 2 बजकर 51 मिनट तक रहेगी। गणेश पूजन के लिए मुहूर्त 13 सितंबर को सुबह 11.02 बजे से दोपहर 1.31 बजे तक श्रेष्ठ माना गया है।
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विश्वकर्मा जयंती की तैयारी प्रारंभ
हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा निर्माण एवं सृजन के देवता कहे जाते हैं। माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही इन्द्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्ग लोक, लंका आदि का निर्माण किया था। इस दिन विशेष रुप से औजार, मशीन तथा सभी औद्योगिक कंपनियों, दुकानों में विशेष पूजा करने का विधान है। विश्वकर्मा पूजा के विषय में कई भ्रांतियां है।
कई लोग भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विश्वकर्मा पूजा करते हैं तो कुछ लोग इसे दीपावली के अगले दिन मनाते हैं। भाद्रपद माह में विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को है।
इस दिन संबंधित स्थानों पर मूर्ति स्थापितकर पूजा की जाएगी और एक दिन पश्चात 18 सितंबर को प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाएगा। विश्वकर्मा के जन्म को लेकर जो कथा प्रचलित है, उसके अनुसार संसार की रचना के आरंभ में भगवान विष्णु सागर में प्रकट हुए। विष्णुजी के नाभिकमल से ब्रह्मा जी दृष्टिगोचर हो रहे थे।
ब्रह्मा के पुत्र धर्म का विवाह वस्तु से हुआ। धर्म के सात पुत्र हुए इनके सातवें पुत्र का नाम श्वास्तुश रखा गया, जो शिल्पशास्त्र की कला से परिपूर्ण थे। श्वास्तुश के विवाह के पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम विश्वकर्मा रखा गया, जो वास्तुकला के अद्वितीय गुरु बने।