विद्या से धन मिलता
आचार्य चाणक्य के अनुसार उपाय करने पर दरिद्रता नहीं रहती यानी लगातार सही दिशा में कोशिश करते रहने से विद्या और सुख मिल जाता है और विद्या से धन मिलता है। इससे गरीबी दूर हो जाती है। इसके साथ ही आचार्य चाणक्य ने कहा है कि लगातार मंत्र जप या पूजा करते रहने से बुद्धि और मन निर्मल हो जाता है। जिससे प्रायश्चित भी होता है और हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।
आचार्य चाणक्य के अनुसार उपाय करने पर दरिद्रता नहीं रहती यानी लगातार सही दिशा में कोशिश करते रहने से विद्या और सुख मिल जाता है और विद्या से धन मिलता है। इससे गरीबी दूर हो जाती है। इसके साथ ही आचार्य चाणक्य ने कहा है कि लगातार मंत्र जप या पूजा करते रहने से बुद्धि और मन निर्मल हो जाता है। जिससे प्रायश्चित भी होता है और हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।
मौन रहने से कलह समाप्त
– आचार्य चाणक्य ने बताया है कि मौन रहने से कलह समाप्त हो जाता है। यानी अगर कोई आपको कुछ कहे तो चुप रहना ही उचित है।
– चुप रहकर बात सुनें और उसके अनुसार अपना काम करें। चुप रहने से क्लेश नहीं होगा और लोगों को पता नहीं चलेगा कि आपके मन में क्या चल रहा है।
– आगे बताया है कि सदैव जागने से भय दूर हो जाता है यानी हर समय चौकन्ना रहने से मन में किसी भी प्रकार का डर नहीं रहता।
– आचार्य चाणक्य ने बताया है कि मौन रहने से कलह समाप्त हो जाता है। यानी अगर कोई आपको कुछ कहे तो चुप रहना ही उचित है।
– चुप रहकर बात सुनें और उसके अनुसार अपना काम करें। चुप रहने से क्लेश नहीं होगा और लोगों को पता नहीं चलेगा कि आपके मन में क्या चल रहा है।
– आगे बताया है कि सदैव जागने से भय दूर हो जाता है यानी हर समय चौकन्ना रहने से मन में किसी भी प्रकार का डर नहीं रहता।
चाणक्य नीति का श्लोक –
– उद्योगे नास्ति दारिद्रयं जपतो नास्ति पातकम्। मौनेन कलहो नास्ति जागृतस्य च न भयम्॥ भावार्थ :
-उद्यम से दरिद्रता तथा जप से पाप दूर होता है । मौन रहने से कलह और जागते रहने से भय नहीं होता।
– उद्योगे नास्ति दारिद्रयं जपतो नास्ति पातकम्। मौनेन कलहो नास्ति जागृतस्य च न भयम्॥ भावार्थ :
-उद्यम से दरिद्रता तथा जप से पाप दूर होता है । मौन रहने से कलह और जागते रहने से भय नहीं होता।
-अति रूपेण वै सीता चातिगर्वेण रावणः। अतिदानाद् बलिर्बद्धो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत्॥ भावार्थ :
-अधिक सुन्दरता के कारण ही सीता का हरण हुआ था, अति घमंडी हो जाने पर रावण मारा गया तथा अत्यन्त दानी होने से राजा बलि को छला गया । इसलिए अति सभी जगह वर्जित है ।
-अधिक सुन्दरता के कारण ही सीता का हरण हुआ था, अति घमंडी हो जाने पर रावण मारा गया तथा अत्यन्त दानी होने से राजा बलि को छला गया । इसलिए अति सभी जगह वर्जित है ।
-को हि भारः समर्थानां किं दूर व्यवसायिनाम्। को विदेश सुविद्यानां को परः प्रियवादिनम्॥ भावार्थ :
-सामर्थ्यवान व्यक्ति को कोई वस्तु भारी नहीं होती । व्यपारियों के लिए कोई जगह दूर नहीं होती । विद्वान के लिए कहीं विदेश नहीं होता । मधुर बोलने वाले का कोई पराया नहीं होता ।
-सामर्थ्यवान व्यक्ति को कोई वस्तु भारी नहीं होती । व्यपारियों के लिए कोई जगह दूर नहीं होती । विद्वान के लिए कहीं विदेश नहीं होता । मधुर बोलने वाले का कोई पराया नहीं होता ।
-एकेनापि सुवर्ण पुष्पितेन सुगन्धिता। वसितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥ भावार्थ :
-जिस प्रकार वन में सुन्दर खिले हुए फूलोंवाला एक ही वृक्ष अपनी सुगन्ध से सारे वन को सुगन्धित कर देते है उसी प्रकार एक ही सुपुत्र सारे कुल का नाम ऊंचा कर देता है |
-जिस प्रकार वन में सुन्दर खिले हुए फूलोंवाला एक ही वृक्ष अपनी सुगन्ध से सारे वन को सुगन्धित कर देते है उसी प्रकार एक ही सुपुत्र सारे कुल का नाम ऊंचा कर देता है |
-एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वह्निना। दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा॥ भावार्थ :
-जिस प्रकार एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने पर सारा वन जल जाता है इसी प्रकार एक ही कुपुत्र सारे कुल को बदनाम कर देता है |
-जिस प्रकार एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने पर सारा वन जल जाता है इसी प्रकार एक ही कुपुत्र सारे कुल को बदनाम कर देता है |