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टॉयलेट प्रेमकथा नहीं, ग्रामीणों के लिए बना डर

locationरतलामPublished: Dec 30, 2017 05:23:15 pm

Submitted by:

harinath dwivedi

अंचल में ओडीएफ के लिए बिजली, पानी और राशन रोकने पर सवाल

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रतलाम। जिले को खुले में शौचमुक्त करने का लक्ष्य फिलहाल हासिल होते नहीं दिख रहा है, लेकिन नियमों की आड़ लेकर शौचालय बनाने का दबाव ग्रामीणों में भय का वातावरण जरूर बना रहा है। बीते माहों के दौरान कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां शौचालय बनाने का दबाव इस कदर बनाया गया कि ग्रामीणों को कहीं अपने जेवरात बेचकर तो कहीं रिश्तेदारों से राशि उधार लेना पड़ी है। वहीं, ग्राम पंचायतों ने तो एक कदम और आगे जाकर बिजली, पानी और राशन तक रोक देने की चेतावनी का भी सहारा लिया।

खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) बनाने के लिए आंकड़ों का लक्ष्य ३१ दिसम्बर तक पूर्ण नहीं हो पाएगा। वहीं, जावरा विकासखंड को भी अवधि तक पूर्ण रूप से ओडीएफ का दर्जा मिलने की संभावना कम है। हालांकि नए वर्ष के पहले पखवाड़े तक प्रशासन जावरा की ज्यादातर पंचायतों को ओडीएफ घोषित करने की तैयारी कर रहा है। इसे लेकर नियमों का डंडा भी चलाया जा रहा है। जनपद पंचायतों के निर्देशों के हवाला देकर ग्रामीण को शौचालय के लिए प्रेरित करने के दौरान कुछ घटनाक्रम भी सामने आ रहे है। शौचालय जागरूकता से ज्यादा दबाव बिजली कनेक्शन काटने और किस्त नहीं मिलने पर भी परेशानी बन रहा है। हालांकि जिम्मेदार अफसरों का कहना है कि शौचालय का उपयोग नहीं करने वालों को ही सख्ती से समझाया जा रहा है, हितग्राही को परेशान करने के आरोप गलत है।

गांव से कस्बों तक नियमों का हवाला देकर दबाव
केस एक- जिले की पिपलौदा जनपद पंचायत के ग्राम उपरवाड़ा में ग्रामीण चैनपुरी गोस्वामी को शौचालय बनाने के लिए सूचीबद्ध किया गया है। गोस्वामी की माने तो पंचायत ने शौचालय निर्माण की किस्त जारी नहीं की है, बावजूद इसके खुद की राशि से निर्माण पूर्ण करने के लिए कहा जा रहा है। आर्थिक तंगी के चलते वे एकमुश्त राशि शौचालय मेंं नहीं लगा सके। ऐसे में पंचायत के निर्देश पर बिजली कनेक्शन ही काट दिया गया।
केस दो- करिया पंचायत के ग्राम आंबा में १ दर्जन से ज्यादा ग्रामीणों ने बिजली कंपनी पर कनेक्शन काटने के आरोप लगाए है। ग्रामीणों ने बकायदा जनपद पंचायत सीईओ के नाम पत्र भेजकर बताया कि शौचालय नहीं बनाने के कारण बिजली कनेक्शन काटे गए है। जबकि हम किस्त मिलने पर शौचालय बनाने के लिए तैयार है। ग्रामीण भंवरसिंह, मुकेश सहित अन्य ने बताया कि पंचायत राशि जारी नहीं कर रही है।
केस तीन- ग्राम किशनगढ़ से लगे क्षेत्रों में कई ग्रामीण शौचालय निर्माण के लिए अपने गेहने और सामान बेचकर राशि जुटा रहे है। ग्रामीणों का कहना है कि शौचालय नहीं बनाया तो बीपीएल की पात्रता होने के बाद भी राशन मिलना बंद हो जाएगा। पंचायत के इस आदेश के बाद कुछ लोग राशि ब्याज पर उधार लेकर भी शौचालय बनाने में जुट गए है। इसे लेकर जनप्रतिनिधियों को भी जानकारी दी है, लेकिन समय पर राशि नहीं मिली।

ओडीएफ का दावा और विवाद दोनों साथ-साथ

जिले में ९ मामलों में ओडीएफ के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, पंचायत सचिव और रोजगार सहायकों के साथ विवाद के प्रकरण आए है।
जिले में तीन चरणों में जागरूकता अभियान के दौरान २३ जनप्रतिनिधियों को शौचालय का उपयोग नहीं करने पर नोटिस दिए गए और चेतावनी भी जारी की गई है।
जावरा जनपद के २२ गांव में जिला स्तरीय नोडल टीम ने कई ग्रामीणों को शौचालय का उपयोग नहीं करते मिलने पर पंचनामा बनाया।
अफसरों ने खुद कई बैठकों में कहा कि जिस गांव में लोग खुले में शौच करने जाते है, वहां वे जनसंवाद करेंगे लेकिन उस दौरान जलपान ग्रहण नहीं करेंगे।

इनका कहना
शौचालय के लिए दबाव बनाने की आवश्यकता नहीं है। किस्त सीधे हितग्राही को जारी की जा रही है, जागरूकता का अभाव होने पर निर्देश जारी किए है।
– लक्ष्मणसिंह डिंडोर, सीईओ जनपद पंचायत रतलाम
ग्रामीणों ने शौचालय के लिए दबाव बनाने संबंधी शिकायत की है। जागरूकता का मामला, इसके लिए लोगों को बुनियादी हक से वंचित नहीं कर सकते।
– प्रभु राठौर, जिलाध्यक्ष कांग्रेस

विशेष टिप्पणी- दंड के डंडे से स्वच्छता
दे शभर में इन दिनों स्वच्छ शहर के लिए होने वाले सर्वेक्षण की तैयारी का आखिरी दौर चल रहा है। हर शहर केन्द्र सरकार के मापदंडों पर खुद को साबित करने के लिए तमाम तरह के प्रयास कर रहा है, लेकिन कस्बों और गांव को स्वच्छ बनाने की होड़ में बने नियम एक नेक मकसद को भी ‘डरÓ में बदल रहे है। दरअसल, रतलाम सहित मंदसौर और नीमच जिले में खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) बनने वाले कस्बे और गांव में प्रशासन टॉरगेट को पूर्ण करने के लिए नागरिक पत्रों में दर्शाए अधिकारों का पालन नहीं करा पा रहा है। बस एक ही लक्ष्य निर्धारित कर दिया गया है, और वह है शौचमुक्त की अवधारणा पर खुद को अव्वल साबित करना। लक्ष्य भेदने की यह दौड़ प्रतिस्पर्धा की नजर से तो बेहतर है, लेकिन इसे शौचालय बनाने के डर की कीमत पर हासिल करना लम्बे समय तक जागरूकता बनाए नहीं रख सकता। गांव में पंचायतों के दबाव मेंं शौचालय बनाने के लिए ग्रामीण या तो अपने गहने बेच रहे हैं या किसी परिचित और रिश्तेदार के आगे हाथ फैलाकर कर्ज ले रहे है। इस तरह के एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों मामले इन जिलों से सामने आए है। शौचालय बनाकर स्वच्छ बनने की इस परीक्षा में प्रथम आने की सोच रखना निश्चित ही सकारात्मक है, लेकिन कर्ज की चिंता में मानवीय मूल्यों को ताक पर तो नहीं रखा जा सकता। आवश्यकता इस सोच को आंदोलन में बदलने के लिए हर उस प्रावधान को सरल बनाने की है, जिसका सहारा लेकर समाज में फैली खुले में शौच की सोच को बदला जा सके। सरकार को कार्रवाई के दंडे के साथ उन लोगों की भावनाओं को भी समझना होगा, जो इस अभियान की महत्वपूर्ण कड़ी है। शौचालय बनाने के लिए समय पर किस्त जारी करने वाली व्यवस्था मजबूती से लागू की जाए, ताकि किसी नागरिक को इसके निर्माण के लिए कर्ज का हाथ नहीं फैलाना पड़े। बिजली कनेक्शन विच्छेद करने और राशन-पानी बंद करने की चेतावनी से आगे भी सोचना होगा। जब तक नागरिकों के लिए नियमों को सरल नहीं किया जाएगा, तब तक गांवों को खुले में शौचमुक्त करने का लक्ष्य शत-प्रतिशत हासिल करना संभव नहीं होगा।

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