रतलाम। बागड़ों का वास में सिक्के वाला मंदिर के नाम से प्रसिद्ध ऋषभलालचंदजी का मंदिर करीब 200 साल पुराना है। जैन समाज की आस्था स्थल में मूलनायक ऋषभदेव की प्रतिमा विराजित है। बताया जाता है कि इसका निर्माण खरतरगच्छ आमने के यति लालचंदजी द्वारा करवाया गया था। मंदिर में विराजमान मूलनायक ऋषभदेव की प्रतिमा व अन्य देव। इसके सभागृह में प्राचीन समय से ही पंचम जार्ज के करीब १२ से १५ चांदी के सिक्के लगे है, जिस कारण इसे सिक्के वाला मंदिर से जाना जाता है। पास में दादावाड़ी है, जिसमें जिन कुशलसूरि की प्रतिमा और पगलियाजी भी हैं। साथ ही मां पद्मावती की एक प्रतिमा है जो बालू रेत से निर्मित है। पूर्व में इसकी व्यवस्था केसरीमल पावेचा परिवार करता था, वर्तमान में मल्लीनाथ कमेटी मंदिर की व्यवस्था देख रही हैं। श्रेणिक सराफ एवं पारस पावेचा ने बताया कि मंदिर में भव्य शिखर बंध बना है। पर्युषण महापर्व के अंतर्गत प्रतिदिन मंदिर पर शाम प्रभु की अंगरचना कर मंगल आरती की जाती है। मंदिर सभागृह में पारसनाथ, चंद्रप्रभु और दादा गुरु देव की मूर्ति विराजित है। साथ ही परिसर में पक्षियों के लिए दाना डालने का स्थान है जहां सुबह-शाम धर्मालु कबूतरों के लिए दाना डालने आते हैं। पर्युषण कलुषित मन धोने का समय है पर्युषण कलुषित मन धोने का समय है। जैन दर्शन में बारीक से बारिक सिद्धांतों के माध्यम से अहिंसा भाव को दर्शाया गया है। अहिंसा भाव में आने से पहले आत्मावलोकन के अवसर के रूप में पयुर्षण पर्व मनाया जाता है। यह आठ दिवसीय पर्व आध्यात्मिक शिविर के समान होता है। जिसमें जैन समाज का प्रत्येक व्यक्ति जुड़ा होता है। इस अवधि में जैनी व्यक्ति का हृदय करुणा, दया और क्षमा मांगने व देने का पर्व है। साध्वी अक्षयनिधिश्री नीमवाला उपाश्रय, रतलाम