सरलता, सहजता और सौम्यता वाला जीवन अंतिम समय तक चले तो जीवन सार्थक
बाल दिवस की सार्थकता पर व्याख्यान
रतलाम। बच्चें सबको अच्छे लगते है। सरलता, सहजता और सौम्यता के जो गुण बच्चों में होते है, वे सबके लिए प्रेरणादायी है। इससे सकारात्मक सोच विकसित होती है और सकारात्मकता से प्रगति हो सकती है। बच्चों में सरलता, सहजता और सौम्यता वाला जीवन अंतिम समय तक चले, तो मनुष्य जीवन सार्थक हो जाएगा।
बाल दिवस की सार्थकता पर व्याख्यान
रतलाम। बच्चें सबको अच्छे लगते है। सरलता, सहजता और सौम्यता के जो गुण बच्चों में होते है, वे सबके लिए प्रेरणादायी है। इससे सकारात्मक सोच विकसित होती है और सकारात्मकता से प्रगति हो सकती है। बच्चों में सरलता, सहजता और सौम्यता वाला जीवन अंतिम समय तक चले, तो मनुष्य जीवन सार्थक हो जाएगा।
यह बात बुधवार सुबह समता कुंज में बाल दिवस पर अमृत देशना देते हुए आचार्यश्री रामेश ने कही। उन्होंने कहा कि भूमि जैसी होती है, फसल भी वैसी होती है। हमारी मनोभूमि में सकारात्मकता रही, तो जीवन में हमेशा सदाशयता बनी रहेगी। बच्चों में जिस प्रकार कुछ नया करने की ललक होती है, वैसी ही ललक सबके भीतर बनी रहनी चाहिए। बच्चों से सीखकर यदि जीवन में कुछ बदलाव आएं, तो बाल दिवस मनाना सार्थक होगा।
शासन प्रभावक धर्मेशमुनि ने कहा कि बाल दिवस का दिन बच्चों के लिए नहीं, अपितु माता-पिता के लिए भी है। मनुष्य जन्म को सार्थक करने के लिए अच्छे संस्कार जरूरी है। अच्छे संस्कारों से दु:ख दूर होते है और जीवन को आगे बढ़ाया जा सकता है। गौतममुनि, महासतीश्री विनयश्री महाराज ने भी संबोधित किया। इस मौके पर दीर्घ तपस्वी कपूर कोठारी ने भी विचार रखे। इंदु-चंचल कोठारी ने 30 उपवास एवं कपूर कोठारी ने 36 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। संचालन सुशील गौरेचा एवं महेश नाहटा ने किया।
शासन प्रभावक धर्मेशमुनि ने कहा कि बाल दिवस का दिन बच्चों के लिए नहीं, अपितु माता-पिता के लिए भी है। मनुष्य जन्म को सार्थक करने के लिए अच्छे संस्कार जरूरी है। अच्छे संस्कारों से दु:ख दूर होते है और जीवन को आगे बढ़ाया जा सकता है। गौतममुनि, महासतीश्री विनयश्री महाराज ने भी संबोधित किया। इस मौके पर दीर्घ तपस्वी कपूर कोठारी ने भी विचार रखे। इंदु-चंचल कोठारी ने 30 उपवास एवं कपूर कोठारी ने 36 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। संचालन सुशील गौरेचा एवं महेश नाहटा ने किया।
श्री संघ द्वारा नवपद एवं वरण की औलीजी के तपस्वियों का अभिनंदन
श्री साधुमार्गी जैन संघ ने समता अतिथि परिसर में नवपद एवं वरण की औलीजी का तप करने वाले 23 तपस्वियों का अभिनंदन किया। अभिनंदन के दौरान चातुर्मास संयोजक महेन्द्र गादिया, श्री संघ अध्यक्ष मदनलाल कटारिया, मंत्री सुशील गौरेचा, प्रकाश नांदेचा, नितिन संघवी, अतुल बाफना, भंवरलाल डांगी, शांतिलाल मूणत, राजेश सियार, अतुल कटारिया, रितेश मेहता, पुष्पा बरडिया, वीणा ढाबरिया, मंजु रांका, प्रियंका कोठारी, सुधा बोहरा, अनिता संघवी आदि मौजूद थे।
श्री साधुमार्गी जैन संघ ने समता अतिथि परिसर में नवपद एवं वरण की औलीजी का तप करने वाले 23 तपस्वियों का अभिनंदन किया। अभिनंदन के दौरान चातुर्मास संयोजक महेन्द्र गादिया, श्री संघ अध्यक्ष मदनलाल कटारिया, मंत्री सुशील गौरेचा, प्रकाश नांदेचा, नितिन संघवी, अतुल बाफना, भंवरलाल डांगी, शांतिलाल मूणत, राजेश सियार, अतुल कटारिया, रितेश मेहता, पुष्पा बरडिया, वीणा ढाबरिया, मंजु रांका, प्रियंका कोठारी, सुधा बोहरा, अनिता संघवी आदि मौजूद थे।
मुनिद्वय के सानिध्य में तोपखाना जिनालय से निकलेगी पालकी यात्रा
रतलाम। अष्टानिका महापर्व के अवसर पर 48 मंडलीय बीजाक्षर मंत्रों की रचना युक्तश्री 1008 श्रीसिद्व चक्र महामंडल का आयोजन १५ नवंबर से किया जा रहा है। इस मौके पर मुनिश्री प्रमाणसागर महाराज व विराटसागर महाराज के सानिध्य में गुरुवार सुबह विश्वशांति रथ यात्रा का आयोजन होगा जिसमें विमानों में 52 प्रतिमाएं विराजमान होगी।
प्रतिष्ठाचार्य बाल बह्मचारी अभय आदित्य इंदौर के निर्देशन में आयोजित इस दस दिवसीय महोत्सव में विभिन्न धार्मिक आयोजन के साथ ही सांस्कृतिक आयोजन व कवि सम्मेलन भी रखा गया है। लोकेन्द्र भवन रोड़ स्थिति विद्या वाटिका में आयोजित महोत्सव के पहले दिन सुबह 6.30 बजे श्री महावीर जिनालय तोपखाना से पालकी यात्रा निकाली जाएगी। जिसमें 52 प्रतिमाओं के साथ मुनि द्वय का सानिध्य रहेगा। पालकी यात्रा विभिन्न मार्गो से होते हुए विद्यावाटिका लोकेन्द्र टाकीज रोड़ पहुंचेगी, जहां ध्वजारोहण, पांडाल पूजन लोकापूर्ण और विधान की क्रियाएं शुरू की जाएगी। शाम छह बजे श्री चन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन मंदिर स्टेशन रोड़ से लोकन्द्र भवन विधान स्थल तक महाआरती का आयोजन किया जाएगा। चातुर्मास समिति के मांगीलाल जैन ने बताया कि 16 से 22 नवंबर तक अभिषेक, शांतिधारा पूजन, विधान के आयोजन होगे। इसी दिन महाआरती शोभायात्रा भी निकाली जाएगी। 23 नवंबर को श्रीजी रथ यात्रा महोत्सव के दौरान लोकेन्द्रभवन विधान स्थल से श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर तोपखाना मंदिर तक यात्रा निकाली जाएगी। 25 नवंबर को पिच्छिका परिवर्तन का आयोजन होगा।
रतलाम। अष्टानिका महापर्व के अवसर पर 48 मंडलीय बीजाक्षर मंत्रों की रचना युक्तश्री 1008 श्रीसिद्व चक्र महामंडल का आयोजन १५ नवंबर से किया जा रहा है। इस मौके पर मुनिश्री प्रमाणसागर महाराज व विराटसागर महाराज के सानिध्य में गुरुवार सुबह विश्वशांति रथ यात्रा का आयोजन होगा जिसमें विमानों में 52 प्रतिमाएं विराजमान होगी।
प्रतिष्ठाचार्य बाल बह्मचारी अभय आदित्य इंदौर के निर्देशन में आयोजित इस दस दिवसीय महोत्सव में विभिन्न धार्मिक आयोजन के साथ ही सांस्कृतिक आयोजन व कवि सम्मेलन भी रखा गया है। लोकेन्द्र भवन रोड़ स्थिति विद्या वाटिका में आयोजित महोत्सव के पहले दिन सुबह 6.30 बजे श्री महावीर जिनालय तोपखाना से पालकी यात्रा निकाली जाएगी। जिसमें 52 प्रतिमाओं के साथ मुनि द्वय का सानिध्य रहेगा। पालकी यात्रा विभिन्न मार्गो से होते हुए विद्यावाटिका लोकेन्द्र टाकीज रोड़ पहुंचेगी, जहां ध्वजारोहण, पांडाल पूजन लोकापूर्ण और विधान की क्रियाएं शुरू की जाएगी। शाम छह बजे श्री चन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन मंदिर स्टेशन रोड़ से लोकन्द्र भवन विधान स्थल तक महाआरती का आयोजन किया जाएगा। चातुर्मास समिति के मांगीलाल जैन ने बताया कि 16 से 22 नवंबर तक अभिषेक, शांतिधारा पूजन, विधान के आयोजन होगे। इसी दिन महाआरती शोभायात्रा भी निकाली जाएगी। 23 नवंबर को श्रीजी रथ यात्रा महोत्सव के दौरान लोकेन्द्रभवन विधान स्थल से श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर तोपखाना मंदिर तक यात्रा निकाली जाएगी। 25 नवंबर को पिच्छिका परिवर्तन का आयोजन होगा।
परमात्मा को पाने के लिए उनसे ही प्रार्थना करते है, यही भक्ति की पराकाष्ठा है
ध्यान और ज्ञान की गहराइयों में गोता लगाते तपस्वी
रतलाम। जिनचन्द्रसागरसूरि महाराज एवं हेमचंद्रसागर महाराज बंधुबेलड़ी की निश्रा में जयंतसेन धाम पर 45 दिनी उपधान तप साधना में तपस्वी ध्यान और ज्ञान की गहराइयों में गोता लगा रहे है। जैसे-जैसे साधना में साधक आगे बढ़ रहे है वैसे वैसे उन्हें दिव्य अनुभूतियों की प्राप्ति हो रही है। देशभर से आये तपस्वी एकांत में साधना के माध्यम से अपने भीतर की सुषुप्त शक्तियों का जागरण कर दिव्यता की अनुभति कर रहे है।
बुधवार को आचार्यश्री ने यहां नियमित व्याख्यान में कहा कि परमात्मा के प्रति अपनी आस्था और अहोभाव व्यक्त करने के लिए हमें सर्वप्रथम उनकी पहचान होना चाहिए। इसीलिए भक्त भगवान से विनती करते है कि है प्रभु मैं आपको पहचान सकूं ऐसी मुझे ज्ञान दृष्टी देना। क्योंकि परमात्मा को देखने के पहले उनका परिचय पाना जरूरी होता है। परिचय होने से हमारी श्रध्दा जोरदार होगी और उसी से हमारा समर्पण भाव जोरदार होगा। वे हमें अपने आत्मीय लगते है, जिससे हमारी निष्ठा मजबूत होती है। इसीसे हमें प्रभु की प्राप्ति सहज होती है। इसलिए हम परमात्मा को पाने के लिए उनसे ही प्रार्थना करते है। यही तो भक्ति की पराकाष्ठा है। इस अवसर पर गणिवर्य विरागचन्द्रसागर और पदमचन्द्रसागर ने भी उपधान साधना के बारे में बताया। वही करमचंद उपाश्रय पर मुनिश्री तारकचन्द्रसागर ने व्याख्यान दिए।