लगातार बढ़ते सड़क हादसों में घायल होकर जिला अस्पताल आने वाले घायलों और बीमारियों से ग्रस्त मरीजों को हर रोज खून की जरूरत पड़ती है। एेसे में खून लेने वालों के मुकाबले देने वालों की संख्या बहुत कम है। किसी भी व्यक्ति से एक यूनिट लिए गए खून को चार बनाने का काम ब्लड सेपरेटर मशीन करती है, जो कि जिला अस्पताल को भी मिली है लेकिन उसे लगाने के लिए जगह के अभाव में वह आज तक बंद पड़ी है। लंबे समय से इसके लिए भवन निर्माण की प्रक्रिया कागजों से बाहर नहीं आ सकी है। जब तक भवन की आवश्यकता पूरी नहीं होती तब तक इसका लाइसेंस भी जारी नहीं हो सकेगा। भवन तैयार होने के बाद इसका लाइसेंस लेकर इसका उपयोग शुरू हो सकेगा, जिसका लाभ मरीज व उनके परिजनों को मिलेगा।
शासन ने लाखों रुपए खर्च करके जिला अस्पताल द्वारा चाही गई मशीनें और उपकरण तो उसे उपलब्ध करा दिए है लेकिन जब तक इन्हे चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में स्टाफ नहीं आता है तब तक इनकी उपयोगिता शून्य ही रहेगी। इतना ही नहीं लाखों रुपए में खरीदी गई मशीनों को एक वर्ष से अधिक का समय भी बीत चुका है, एेसे में इनकी उपयोगिता के बगैर ही वारंटी भी खत्म हो रही है। अस्पताल में हालात ये है कि वर्तमान में यहां पैथोलॉजिस्ट का पद ही खाली पड़ा है, एेसे में जो मशीन व उपकरण चल रहे है, वह भी प्रभारियों के भरोसे चल रहे है।
स्टाफ की कमी बन रही बाधा
– जिला अस्पताल में चार छोटे और दो बडे़ वेंटीलेटर है लेकिन इन्हे चलाने के लिए २४ घंटे मौजूद रहने वाला स्टाफ नहीं है। प्रशिक्षु स्टाफ की कमी के चलते इनका ठीक से उपयोग नहीं हो पा रहा है। इमरजेंसी में कुछ समय के लिए हम इसका उपयोग करते है। वहीं अन्य मशीने भी है लेकिन उन्हे भी चलाने के लिए स्टाफ व स्थान की कमी के चलते उपयोग नहीं हो पा रहा है।
डॉ. आनंद चंदेलकर, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल, रतलाम