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वंश की बेल बढ़ाने के फेर में अंदर से टूट रही महिला!

कभी समाज, तो कभी अपने ही बन रहे ‘दुश्मन’, वंशवाद है जनसंख्या वृद्धी का बड़ा कारण

राजसमंदSep 25, 2018 / 11:51 am

laxman singh

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वंश की बेल बढ़ाने के फेर में अंदर से टूट रही महिला!

अश्वनी प्रतापसिंह @ राजसमंद. पुरुष प्रधान समाज को प्रगाढ़ता देने में महिलाओं पर संतानोत्पत्ति का ऐसा दबाव होता है कि उसे हर स्तर पर समझौता करना पड़ता है। कईबार समाज, तो कईबार परिवार ही उसका दुश्मन बन जाता है। ऐसा ही एक मामला (बदला हुआ नाम) छाया का है। छाया का पीहर शहर में है, वह विज्ञान विषय से स्नातक तक पढ़ी है, उसकी शादी शहर से नजदीक ही एक गांव में हो गई थी।
शादी के शुरू में दो बेटियां होने तक सब ठीक-ठाक चला। एक दिन उसने पति से परिवार नियोजन के तहत ऑपरेशन की बात कही, पति एक बार उसकी बात के लिए राजी भी हो गया, लेकिन धीरे-धीरे बात सास-ससुर तक पहुंच गई। बस उस दिन से छाया का जीवन समझौते में बदल गया। स्वतंत्र विचार वाली छाया को पता ही नहीं चला कब उसके अधिकारों और विचारों पर औरों का कब्जा हो गया। अब वह परिवार की इच्छापूर्ति का एक साधन बनकर रह गई। छाया से सभी को एक पुत्र चाहिए, पुत्र के चक्कर में छाया ने 5 बेटियों को जन्म दे दिया। छाया फिर 5 माह के गर्भ से है, शरीर में 7.8 ग्राम हिमोग्लोबिन है, शरीर में पेट के अलावा हड्डियां ही दिखती हैं। जबकि वह एक सम्पन्न घर से है, खाने-पीने की भी कोई कमी नहीं है, लेकिन उसे अंदर ही अंदर फिर से बेटी पैदा होने का भय खाए जा रहा है। कहीं फिर उसने बेटी को जन्म दे दिया तो…।

साल में 8-10 मामले आते हैं…
साल में 8-10 मामले ऐसे आते हैं, जहां पर महिलाओं को बेटा नहीं होने पर घर से निकाल दिया जाता है, या उन्हें पीहर (मायके) में छोड़ दिया जाता है। जब मामले की तह पर जाते हैं तो पता चलता है कि उसने पहले दो-तीन बेटियों को जन्म दे रखा है, लेकिन उसके बाद भी घरवालों को बेटा चाहिए। निश्चित ही यह वंशवाद ही है। शकुंतला पामेचा, संयोजिका, महिला मंच राजसमंद
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