वर्ष 2013 में आरके मार्बल माइंस में करीब 6 हजार ट्रक- टेलर प्रतिमाह उत्पादन हो रहा था, जबकि अब प्रति माह 2 हजार से भी कम ट्रक- ट्रेलर मार्बल का उत्पादन हो पा रहा है। आरके ग्रुप की नई माइंस का पैंदा उघड़ आया है, जिसे चौतरफा फेंसिंग कर सुरक्षित स्टेज पर ला रहे हैं। वर्ष 2015 से अब तक लगातार श्रमिक, इंजीनियर के साथ सभी कार्मिकों को पीआरएस ऑफर दिया, तो सैकड़ों लोग बाहर हो गए।
सिरामिक, विक्ट्रीफाइट व विदेशी टाइल्स बाजार में आने के बाद मार्बल की बिक्री काफी कम हो गई, जिसकी वजह से मार्बल उद्योग का अर्थतंत्र ही गड़बड़ा गया है। इस वजह से अब मार्बल कारोबारियों के लिए नए उद्योग की ओर रुख करना ही एकमात्र विकल्प रह गया है। बिक्री घटने से खान, गैंगसा व कटर संचालकों के लिए श्रमिकों का वेतन भुगतान व बिजली बिल चुकाने की चिंता को लेकर अभी से पसीने छूटने लगे हैं।
– खदानें गहरी होने से खर्च बढऩे से दर महंगी
– गहराई में पहले जैसी मार्बल की गुणवत्ता नहीं
– सिरामिक टाइल्स का रेडिमेट उपयोग
– मार्बल फीटिंग में समय ज्यादा, घिसाई खर्च भी
– उत्पादन कम होने से भी दरें हुई महंगी
– शारीरिक दृष्टि से मार्बल अनुकूल, जबकि सिरामिक और विदेशी टाइल्स से कई साइड इफेक्ट है, मगर इससे आमजन नहीं वाकिफ
1006 मार्बल की खदानें
400 मार्बल गैंगसा एसोसिएशन
350 ट्रक- ट्रेलर है राजसमंद में
20 हजार से श्रमिक खान, गैंगसा, कटर पर
10 हजार श्रमिक हो गए बेरोजगार
44 लाख टन है मार्बल का उत्पादन
20 फीसदी सिरामिक टाइल्स की बिक्री
80 फीसदी में मार्बल, विदेशी टाइल्स का बाजार