रियासतकाल में बना तालाब- असावा
केलवाड़ा के पूर्व सरंपच राधेश्याम असावा ने बताया कि लाखेला तालाब राजा-महाराजाओं ने क्षेत्र के गरीब किसानों के खेतों में सिंचाई कार्यांे के उपयोग के लिए बनवाया था। इससे सैकड़ों बीघा जमीन में फसलों की पैदावार की जाती थी। लेकिन, जैसे-जैसे समय बीतता गया पानी की कमी होने लगी। लगभग ३५ वर्षेेंां तक जल कमेटी के अध्यक्ष रहते हुए असावा ने प्रशासन से मिलकर १० फीट पानी केलवाड़ा कस्बे के निवासियों के लिए पेयजल के लिए आरक्षित करवाया था। असावा ने पत्रिका से बात करते हुए बताया उन्होंने ३५ वर्षों तक तालाब का रखरखाव कराते हुए किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया था। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से राजनेताओं एवं प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से तालाब के पेटे में अनाधिकृत रूप से कुएं खोद दिए गए। इससे सिंचाई के बाद पेयजल के लिए आरक्षित रहने वाला पानी कुओं के जरिए होटलों में चला जाता है। इससे तालाब लगभग हर साल सूखने के कगार पर पहुंच जाता है। उन्होंने मांग रखते हुए कहा कि जिस समय कुएं खोदे गए उस समय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही करते हुए अवैध कुओं को बंद कर देना चाहिए। वहीं, अगर कुएं वैध हैं, तो इसका राजस्व किस विभाग को कितना मिल रहा है और उसका क्या उपयोग हो रहा है। अवैध है तो किसी की सह पर चल रहे हैं। इसका निराकरण होना चाहिए।
केलवाड़ा में पड़ रहे पेयजल के लाले
केलवाड़ा कस्बे में लाखेला तलाब सूखने के बाद इस वर्ष पेयजल तक लाले पड़ गए हैं। जहां ७२ घंटे के बाद नलों में मात्र २५-३० मिनिट पानी आ रहा है, वहीं टैंकरों से जलापूर्ति कर पेयजल की समस्या से निजात पाने की कोशिश की जा रही है। कुंभलगढ़ उपखण्ड मुख्यालय सहित आसपास में पहले से ही पेयजल का कोई स्थायी समाधान नहीं है। ऐसे में लाखेला तालाब ही एकमात्र सााधन है, जो आम लोगों की प्यास बुझाने के काम आता है।
केलवाड़ा के पूर्व सरंपच राधेश्याम असावा ने बताया कि लाखेला तालाब राजा-महाराजाओं ने क्षेत्र के गरीब किसानों के खेतों में सिंचाई कार्यांे के उपयोग के लिए बनवाया था। इससे सैकड़ों बीघा जमीन में फसलों की पैदावार की जाती थी। लेकिन, जैसे-जैसे समय बीतता गया पानी की कमी होने लगी। लगभग ३५ वर्षेेंां तक जल कमेटी के अध्यक्ष रहते हुए असावा ने प्रशासन से मिलकर १० फीट पानी केलवाड़ा कस्बे के निवासियों के लिए पेयजल के लिए आरक्षित करवाया था। असावा ने पत्रिका से बात करते हुए बताया उन्होंने ३५ वर्षों तक तालाब का रखरखाव कराते हुए किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया था। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से राजनेताओं एवं प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से तालाब के पेटे में अनाधिकृत रूप से कुएं खोद दिए गए। इससे सिंचाई के बाद पेयजल के लिए आरक्षित रहने वाला पानी कुओं के जरिए होटलों में चला जाता है। इससे तालाब लगभग हर साल सूखने के कगार पर पहुंच जाता है। उन्होंने मांग रखते हुए कहा कि जिस समय कुएं खोदे गए उस समय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही करते हुए अवैध कुओं को बंद कर देना चाहिए। वहीं, अगर कुएं वैध हैं, तो इसका राजस्व किस विभाग को कितना मिल रहा है और उसका क्या उपयोग हो रहा है। अवैध है तो किसी की सह पर चल रहे हैं। इसका निराकरण होना चाहिए।
केलवाड़ा में पड़ रहे पेयजल के लाले
केलवाड़ा कस्बे में लाखेला तलाब सूखने के बाद इस वर्ष पेयजल तक लाले पड़ गए हैं। जहां ७२ घंटे के बाद नलों में मात्र २५-३० मिनिट पानी आ रहा है, वहीं टैंकरों से जलापूर्ति कर पेयजल की समस्या से निजात पाने की कोशिश की जा रही है। कुंभलगढ़ उपखण्ड मुख्यालय सहित आसपास में पहले से ही पेयजल का कोई स्थायी समाधान नहीं है। ऐसे में लाखेला तालाब ही एकमात्र सााधन है, जो आम लोगों की प्यास बुझाने के काम आता है।