बिनोल उमावि के खेल मैदान पर जैसे ही शहीद गुर्जर के मित्र अशोक दाधीच पहुंचे तो उनकी आंखे नम हो गई। अपने शब्दो को व्यक्त करने में भी दिल को थामते हुए कहा कि यही मैदान था, जहंा पर वो तथा उनका परममित्र शहीद गुर्जर, जिसे काका के नाम से जानते थे, इसी मैदान में दौड़ते हुए फौजी की तैयारी की थी। उन्होंने बताया कि इस मैदान में प्रतिदिन के पैंतीस से चालीस चक्कर लगाते थे।
गांव आते तो सभी से होती रामा-सामी
शहीद गुर्जर के बचपन के मित्र शैतानसिंह ने बताया कि जब भी छुट्टियो में वो आते तो पूरे गांव के मिलने वालों से दिल खोलकर बात करते थे। उनके मित्र पवन दाधीच, विनोद सेन, अशोक दाधीच, अमरसिंह, मुरली चोरडिया, राजु चोरडिया, भेरूलाल सेन, चांदमल पोखरना ने बताया कि गांव का फौजी भाई नारायण हंसमुखी व खुले हृदय के व्यक्तित्व के धनी थे।