अस्पताल में भी अन्य वैकल्पिक व्यवस्था नहीं
दरअसल, अस्पताल में करीब डेढ़ घंटे तक घायल तड़पते रहे लेकिन पता होने के बावजूद राजगढ़ रोड पर चंद दूर ही एक साथ तीन जननी वाहन के चालक तेज आवाज में गाने सुन रहे थे। अस्पताल में भी अन्य वैकल्पिक व्यवस्था नहीं, ऐसे में घायलों के परिजनों को अपने खर्च पर निजी वाहन के माध्यम से उन्हें ले जाना पड़ा। जबकि शासन का प्रोटोकॉल यह है कि इमरजेंसी केस निपटाने के लिए सभी तत्पर रहे हैं लेकिन जननी एक्सप्रेस के चालकों के इस अमानवीय कृत्य ने लोगों का भरोसा फिर से प्रशासनिक तंत्र से तोड़ा है।
प्रसूताओं के अलावा किसी को नहीं लाएंगे-ले जाएंगे
उल्लेखनीय है कि जननी एक्सप्रेस वाहन वालों ने यह भ्रम भी फैला रखा है कि सिर्फ प्रसूताओं के अलावा किसी को नहीं लाएंगे-ले जाएंगे, लेकिन बीते दिनों ही मप्र शासन ने जननी एक्सप्रेस का पूरा संचालन भी 108 को ही सौंप दिया है। यानि यदि आपको जननी बुलाना हो या एम्बुलेंस 108 पर ही कॉल करना होगा।
राहगीरों ने सूचित किया फिर भी नहीं चेते
चालकों की लापरवाही का आलम यह रहा कि ब्यावरा से राजगढ़ की ओर जा रहे कुछ राहगिरों ने उन्हें सूचित किया कि आप लोग यहां बैठे हो वहां घायलों को आपके वाहन की जरूरत है लेकिन बजाए वे अस्पताल जाने के उल्टा राजगढ़ की ओर रवाना हो गए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी ढर्रे में किस हद की व्यवस्थाएं हैं और लोग इसे लेकर कितने गंभीर हैं।
108 में ही जननी एक्सप्रेस का विलय हो चुका है, उन्हें हर कॉल रिसिव करना ही होगा। इस तरह से घायलों को छोड़ देना और जानबूझकर नजर अंदाज करना बेहद गंभीर लापरवाही है। मैं संबंधितों से बात करता हूं, वैसे राजगढ़ ग्वालियर डिविजन में आता है लेकिन मैं यहीं से शिकायत फॉरवर्ड करूंगा, जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे।
-फैजान खान, ऑपरेशन मैनेजर, 108-संजीवनी, भोपाल डिविजन
मैं जननी वाले से पूछता हूं
अस्पताल में जो एम्बुलेंस थी उससे कुछ मरीज ले जाए गए थे लेकिन जननी एक्सप्रेस वालों ने ऐसा क्यूं किया इसकी जानकारी लेता हूं। संबंधित से जवाब-तलब किया जाएगा। लापरवाही सामने आई तो कड़ी कार्रवाई करेंगे।
-डॉ. एस. एस. गुप्ता, सीएमएचओ, राजगढ़