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इस जंगल में विराजमान है मां जानकीवन और भोलेनाथ, पूरे साल रहती है श्रद्धालुओं की भीड़

locationरायपुरPublished: Nov 15, 2018 06:27:12 pm

हर साल क्वांर व चैत्र नवरात्र में सैकड़ों श्रद्धाल मनोकामना ज्योति प्रज्जवलित कराते हैं,

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इस जंगल में विराजमान है मां जानकीवन और भोलेनाथ, पूरे साल रहती है श्रद्धालुओं की भीड़

रायपुर. छत्तीसगढ़ में मां जानकीवन और भगवान भोलेनाथ लोगों की गहरी आस्था से जुड़ा हुआ है। कवर्धा जिले के जंगल में चार गांव के बीचों बीच मुख्य खार में तालाब किनारे विराजमान मां जानकीवन के दर्शन करने पूरे साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ की भीड़ लगी रहती है। हर साल क्वांर व चैत्र नवरात्र में सैकड़ों श्रद्धाल मनोकामना ज्योति प्रज्जवलित कराते हैं, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए सुलभ रास्त तक नहीं है, जो श्रद्धालुओं के आस्था पर चोट पहुंचा रही है। पत्रिका की टीम मां जानकीवन दर्शन के लिए रवाना हुए। जिला मुख्यालय लगभग 25 किमी दूर ग्राम चचेड़ी से फांदातोड़ होते हुए सिंघनपुरी पहुंचे।
ग्राम सिंघनपुरी से जैसे निकले मार्ग की स्थिति काफी खराब थी। कच्चे व जर्जर मार्ग पर मोटर साइकिल से बमुश्किल आगे बढ़ते रहे। लगभग एक किमी इसी मार्ग पर आगे जाने के बाद मंदिर की कुछ झलकियां दिखाई दी। इसके बाद जर्जर मार्ग मंदिर पहुंचने से कुछ पहले ही खत्म हो गया। मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल पगड़ंडी का सहारा ही पहुंचा जा सकता था। हमने भी वहीं किया। मोटर साइकिल वही पर खड़ी कर दी और पैदल ही आगे बढ़े। चार से पांच खेत को पैदल पार करने के बाद मंदिर परिसर पहुंचे।
जहां मां जानकीवन तालाब किनारे इमली पेड़ के शीतल छाए में विराजमान है। मां जानकीवन मुख्य मंदिर के अलावा यहां भगवान भोलेनाथ और भी मंदिर है। आसपास के ग्रामीण प्रतिदिन मां जनकीवन व भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए पहुंचते हैं, जिस दिन हम लोग पहुंचे थे उस दिन भी काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे थे। अन्य श्रद्धालुओं के साथ हमने भी मां जानकीवन की दर्शन किए। वहीं मंदिर के दूसरे छोर पर ज्योति कलश प्रज्जवलि कक्ष है। जहां चैत्र व क्वांर नवरात्र में मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित होती है। यहां की शांत व शीतल वातावरण काफी शुकुनदायक रहा। आपकों बता दे कि मां जानकीवन मंदिर ग्राम चचेड़ी, फांदातोड़, सिंघनपुरी व बिपतरा, कुंआ के शहरद यानि बीच खार में विराजमान है।

पहुंच मार्ग तक नहीं
मां जानकीवन के प्रति आसपास के ग्रामीणों में गहरी आस्था है, लेकिन यहां तक पहुंचने आसान नहीं है। कच्ची व पगडंडी मार्ग से होते हुए यहां तक पहुंचा जा सकता है। मंदिर पहुंचने से कुछ दूर पहले ही कच्ची रास्त खत्म हो जाता है। इसके बाद पैदल ही जाना पड़ता है। वहीं बरसात के दिनों में मंदिर तक पहुंचने के लिए खेतों के मेड़ का सहारा लेना पड़ता है, जो श्रद्धालुओं के आस्था पर गहरी चोट पहुंचा रहा है।

वर्षों पहले मां जानकीवन तालाब किनारे इमली पेड़ के नीचे विराजमान रहा। धीरे धीरे ग्रामीणों की आस्था बढ़ती गई। इसके बाद जनसहयोग से मंदिर का निर्माण किया गया। वहीं अलग-अलग समाज के लोगों ने आर्थिक सहयोग से शिव मंदिर का निर्माण कराया। आसपास के ग्रामीण मां जानकीवन को धार्मिक स्थल के रुप में विकसित कराना चाहते हैं, लेकिन प्रशासन की ओर सहयोग नहीं मिल पा रहा है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है यहां तक पहुंचने के लिए सुलभ मार्ग भी नहीं है। इसके चलते धार्मिक स्थल का विकास नहीं हो पाया है। इससे गांव सहित आसपास के गांव के लोगो में नाराजगी है।
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