राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर 29 अगस्त को नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के भव्य दरबार हॉल में खेल अलंकरण समारोह का आयोजन किया गया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पैरा एथलीट देवेंद्र झाझरिया और पूर्व हॉकी कप्तान दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मिडफील्डरों में शुमार सरदार सिंह को खेल रत्न से नवाजा।
बिलासपुर में की नौकरी
36 वर्षीय देवेंद्र झाझरिया खेल रत्न से सम्मानित होने वाले पहले पैरा एथलीट बन गए। देवेंद्र झाझरिया ने कुछ समय छत्तीसगढ़ में भी बिताया है। बताते हैं कि देवेंद्र ने बिलासपुर में रेल विभाग में ओ.एस. कर्मचारी के तौर पर नौकरी की थी। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक बिलासपुर रेलवे ने देवेंद्र झाझरिया को एक लाख रुपए की सहायता की थी। साथ ही खेलों की तैयारी के लिए भी पूरी छूट दे रखी थी। रेलवे ने देवेंद्र झाझरिया को बिलासपुर में नि:शुल्क क्वार्टर भी दिया था।
36 वर्षीय देवेंद्र झाझरिया खेल रत्न से सम्मानित होने वाले पहले पैरा एथलीट बन गए। देवेंद्र झाझरिया ने कुछ समय छत्तीसगढ़ में भी बिताया है। बताते हैं कि देवेंद्र ने बिलासपुर में रेल विभाग में ओ.एस. कर्मचारी के तौर पर नौकरी की थी। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक बिलासपुर रेलवे ने देवेंद्र झाझरिया को एक लाख रुपए की सहायता की थी। साथ ही खेलों की तैयारी के लिए भी पूरी छूट दे रखी थी। रेलवे ने देवेंद्र झाझरिया को बिलासपुर में नि:शुल्क क्वार्टर भी दिया था।
जब एक हाथ काटना पड़ा था
देवेंद्र झाझरिया का जन्म 10 जून 1981 को राजस्थान के चुरू जिले के ग्राम झाझारियन में हुआ था। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में जन्मे देवेंद्र सामान्य बच्चे की तरह ही थे। आठ साल की उम्र में देवेंद्र एक हादसे का शिकार हो गए। बालक देवेंद्र एक पेड़ पर चढ़े उसी दौरान वह बिजली के तार की चपेट में आ गए थे। गंभीर रूप से घायल देवेंद्र का जीवन बचाने के लिए डॉक्टरों को उनका बायां हाथ काटना पड़ा था। खेलों में रुचि होने के कारण वह भाला फेंक प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगे। उनकी मेहनत और लगन ने भाला फेंक के जरिए उन्हें नई-नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और विभिन्न पुरस्कारों से अलंकृत किया।
देवेंद्र झाझरिया का जन्म 10 जून 1981 को राजस्थान के चुरू जिले के ग्राम झाझारियन में हुआ था। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में जन्मे देवेंद्र सामान्य बच्चे की तरह ही थे। आठ साल की उम्र में देवेंद्र एक हादसे का शिकार हो गए। बालक देवेंद्र एक पेड़ पर चढ़े उसी दौरान वह बिजली के तार की चपेट में आ गए थे। गंभीर रूप से घायल देवेंद्र का जीवन बचाने के लिए डॉक्टरों को उनका बायां हाथ काटना पड़ा था। खेलों में रुचि होने के कारण वह भाला फेंक प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगे। उनकी मेहनत और लगन ने भाला फेंक के जरिए उन्हें नई-नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और विभिन्न पुरस्कारों से अलंकृत किया।