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जहां पर चार आदमी का कंधा और एक चारपाई एम्बुलेंस बन जाती है, वह विधानसभा है कांकेर

locationरायपुरPublished: Nov 03, 2018 05:10:48 pm

Submitted by:

Ashish Gupta

माओवाद का दंश झेल रहे कांकेर में जिला मुख्यालय को पार करते ही आम आदमी के चेहरे को देखकर साफ़ पता चलने लगता है कि उम्मीदों का टूटना क्या होता है। पढ़िए उत्तर बस्तर से ग्राउंड रिपोर्ट।

CG Election 2018

जहां पर चार आदमी का कंधा और एक चारपाई एम्बुलेंस बन जाती है, वह विधानसभा है कांकेर

रायपुर. माओवाद का दंश झेल रहे कांकेर में जिला मुख्यालय को पार करते ही आम आदमी के चेहरे को देखकर साफ़ पता चलने लगता है कि उम्मीदों का टूटना क्या होता है। ग्राम पंचायत ठेमा पहुंचते ही सबसे पहले हमारी नजर आदिम जाति आदर्श बालक आश्रम ठेमा पर पड़ी। अंदर जाते ही बालक आश्रम के सहायक शिक्षक मन्नू कुड़ोपी ने बताया कि यहां कक्षा पहली से पांचवीं तक के 50 बच्चे अध्ययनरत हैं। मुआयना करने के दौरान वहां एक ही कक्षा और बरामदे में कुर्सियां लगी नजर आई, जहां बच्चे नदारद थे। पढ़िए उत्तर बस्तर से आकाश शुक्ला की ग्राउंड रिपोर्ट।
सवाल करने पर शिक्षक कुड़ोपी ने बताया कि यहां कक्ष नहीं होने के कारण पहली से पांचवीं तक के बच्चों को एक साथ पढ़ाया जाता है। आधे कक्षा के अंदर बैठते हैं, तो आधे बरामदे में। कुड़ोपी ने बताया कि बालक आश्रम में सिर्फ दो शिक्षक हैं। शिक्षक की मांग तो की गई हैं, लेकिन अब तक पूरी नहीं हुई। वहीं 50 बच्चों के रहने के लिए बिस्तर भी पर्याप्त नहीं दिखे। यहां पर सवाल यह है कि पहली से पांचवी तक के बच्चों को एक साथ एक समय पर उनके सभी विषयों की पढ़ाई कैसे? इसके अलावा ग्रामीणों ने बताया कि स्वास्थ्य, बिजली, पानी, जैसे बुनियादी सुविधाओं की भी दरकार है।
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भवन नहीं पंचायत परिसर में लगती है कक्षाएं
ठेमा से निकलते ही हमारा सफर पहाड़ी के छोर पर बसे व विधानसभा के अंतिम ग्राम पंचायत रावस के लिए शुरू हुआ। हाल ही में यहां 8 करोड़ से पुल और सडक़ बनने से पहाड़ी पर बसे आदिवासियों की जिंदगी को आसान किया है, लेकिन स्वास्थ्य और यातायत जैसी सुविधाएं आज भी नदारद है। पंचायत भवन मे पदाधिकारियों से मिलने पहुंचे तो यहां हाई स्कूल दो कमरों में संचालित किया जा रहा था। शिक्षक कीर्ति देवांगन, शरद मंडावी ने बताया कि भवन नहीं होने के कारण स्कूल खुलने के तीन साल बाद भी पंचायत परिसर मेेंं कक्षाएं लग रही है।

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ग्रामीणों ने बताया जब पंचायत की बैठक होती है तो या किसी कार्यक्रम में बच्चों को छुट्टी दे दिया जाता है। इसके अलावा शिक्षकों की कमी यहां बनी हुई है। जैसे-तैसे बच्चे यहां पढ़ाई कर भी ले तो हायर स्कूल के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं है। लड़किया तो पढ़ाई छोड़ देतीं है। कुछ बच्चे ही शहर की तरफ रूख कर पाते हैं। ऐसा ही हाल प्राथमिक शाला का भी देखने को मिली। जहां शिक्षकों की कमी तो है ही मध्यान्ह् भोजन में भी मेनू का पालन नहीं किया जा रहा था। प्रशासन से लेकर शिक्षा मंत्री व मुख्यमंत्री से तक कई बार स्कूल भवन और बेहतर शिक्षा व्यवस्था के लिए आवेदन के बावजूद स्थिति जस की तस है।
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मलेरिया का दंश, स्वास्थ्य सुविधा चौपट
रावस पंचायत की दशरी बाई, देवकी, परमिला अर्जुन यादव, बलदेव, गोपीचंद यादव, गोवर्धन कहा कहना है कि गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं है। अधिकांश लोग यहां मलेरिया से पीडि़त हैं। राशन के लिए भी 20 किमी की दूरी तय करना पड़ता है। यातायत की सुविधा पहाड़ी क्षेत्र में नहीं होने की वजह गांव से बाहर जाने के लिए सोचना पड़ता है। बीमार होने पर आज भी चार पाई के सहारे कांधे पर पीडि़त को लंबी दूरी तय कर अस्पताल ले जाते हैं। जनप्रतिनिधियों से बात करने पर वे दूरी बनाते हैं। मुख्य सडक़ पहाड़ी तक पहुंचाकर सरकार से अच्छा काम तो किया लेकिन गांव के अंदर की स्थिति काफी खराब है। ग्रामीणों ने बताया कि संचार क्रांति के साथ ही सरकार की कई योजनाओं का लाभ अब तक नहीं मिल पाया है।

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अब तक जोह रहा विकास की बाट
पहाड़ी के उपर कच्ची पगडंडियों के चढ़ाई कर जब हम पर्रेदोड़ा पहुंचते हैं। यहां चोटी पर 15 से बीस घर बसे दिखे। किसानी काम से लौटे कयाराम नेताम, रामबती, रायसिंह, देवचंद, मनराखन बताते हैं कि पहाड़ी पर बसे होने के कारण 5 किमी दूरी तय कर नीचे उतरना पड़ता है। विधायक प्रतिनिधि के आज तक हमने दर्शन नहीं किए। पानी नहीं गिरने से फसल पूरी तरह चौपट हैं। फसल बीमा का लाभ नहीं मिला है। पीने के पानी के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। नेटवर्क नहीं है, मनरेगा से रोजगार नहीं मिला। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में बस वन संग्रहण से ही जीवन कट रहा।

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