– यह भी विधायक तय करेंगे। इस बारे में अभी कैसे बताया जाए। प्रश्न: महागठबंधन का चेहरा क्या राहुल ही होंगे?
– हमारा प्रस्ताव है कि महागठबंधन में जो भी पार्टी सर्वाधिक सीटें लाएगी उसका लीडर पीएम बनना चाहिए।
– कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में बहुत फर्क है। यहां तीसरा दल माइनर है। उसकी कोई ताकत नहीं। चाणक्य के जमाने से चला आ रहा है। सब कुछ चुनावी राजनीति से नहीं होता, कुछ कूटनीति से भी होता है। कुमार स्वामी कर्नाटक के मजबूत नेता हैं। वे स्वाभाविक रूप से योग्यता रखते हैं। यहां तीसरा दल है ही नहीं। अगर आप कांग्रेस को माइनस कर दो तो फिर कौन अल्टरनेटिव होगा?छत्तीसगढ़ में तो 15 सालों में बंटाढार हो गया। मनरेगा जैसी आर्थिक इंजन वाली योजनाओं के भुगतान महीनों नहीं हो रहे। गरीबों की संख्या बढ़ रही है। क्या 15 सालों में रमन ने यहा किया है?
– मुख्यमंत्री चुनने का हक सिर्फ जनता द्वारा चुने हुए विधायकों को होता है। हम इसी प्रक्रिया में भरोसा करते हैं। ऐसे में जो भी होगा वह विधायक तय करेंगे।
– यह कोई जोखिम नहीं। लोग समझ जाएंगे। हम आंतरिक लोकतंत्र वाली पार्टी हैं। प्रक्रिया ही हमारी प्रैक्टिस है।
– नहीं, आप गलत कह रहे हैं। राहुल अगर पीएम बनना चाहते तो यूपीए-एक में ही बन जाते। या यूपीए-दो में। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। लेकिन अब वे पूरी तरह से तैयार हैं। नए आइडिया और पूरी क्षमता के साथ वे बढ़ रहे हैं। उनका अपना एक विजन है। देश को लेकर वे सोचते हैं। कुछ करना चाहते हैं।…
– यह नो..नो.. मेरा मतलब यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी कि कौन नेता होगा। महागठबंधन की पार्टियां बात कर लेंगी। 2019 से पहले सारी बातें स्पष्ट हो जाएंगी।
– हमारा अभी समय बहुत है। 2019 से पहले सबकुछ हो जाएगा। हमें कोई जल्दबाजी नहीं। प्रश्न: तो क्या कांग्रेस में सिर्फ राहुल ही हैं जो ऐसे हैं। क्यों नहीं पीएम पद के उम्मीदवार वीरप्पा मोइली बन सकते, 50 सालों का अनुभव है। सीएम से लेकर केंद्रीय मंत्री तक और संगठन के कई पदों पर आप?
– राहुल जी की पैन इंडिया स्वीकार्यता है। हमारे अन्य सहयोगी भी साथ में हैं। वे बहुत परिपक्व और मजबूत नेता के रूप में उभर रहे हैं। एक युवा जो भारत के लिए सपने देख रहा है।
(प्रश्न को इग्नोर करते हुए)
– नहीं, ऐसा नहीं होगा। राजनीति में मिथक कोई स्थाई नहीं होते। राजस्थान में कांग्रेस निश्चित रूप से आ रही है। वहां का इतिहास कहता है। रोटेशन पर सत्ता हस्तांतरण होता है। सत्ता विरोधी लहर है। एमपी और छत्तीसगढ़ में डेफिनिटली हम जीत रहे हैं। छत्तीसगढ़ में तो 15 सालों में बंटाढार हो गया। मनरेगा जैसी आर्थिक इंजन वाली योजनाओं के भुगतान महीनों नहीं हो रहे। गरीबों की संख्या बढ़ रही है। क्या 15 सालों में रमन ने यहा किया है?