ललित सिंह राजपूत/रायपुर. सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा मनाने भोजपुरी समाज एकजुट हो गया है। भोजपुरी समाज महादेवघाट की अगुवाई में पूरा समाज मिलकर महादेवघाट पर छठ मइया की पूजा करेगा। दीपावली के बाद इसे लेकर सारी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। इस बार रायपुरा स्थित हटकेश्वरनाथ की नगरी महादेवघाट के खारून नदी तट पर २४ से आस्था का हुजूम उमड़ेगा। शाम को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ ही भोजपुरी छठ मइया गीत की बयार बहेगी। बड़े पैमाने पर होने वाले इस आयोजन को लेकर समाज पूर्व में ही बैठक कर चुका है। यह पूजा 24 अक्टूबर से नहाय खाय से शुरू होकर 27 की सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य देने के साथ ही संपन्न होगा। कड़ी साधना का यह पर्व 36 घंटें तक लगातार जारी रहेगा, जिसमें परवैतिन (व्रती) महिलाएं खाना तो दूर बिना पानी पिए उपवास रहेंगी।
IMAGE CREDIT: Lalit singh Rajputनहाय खाय से होगी पूजा की शुरुआत छठ पूजा दिवाली के ६ दिन बाद मनाया जाता है। यह पूजा चार दिनों तक चलता है। 24 तारीख को व्रती महिलाएं नहाय खाय से पूजा की शुरुआत करेंगी। 25 को खरना, 26 की शाम में डूबते सूर्य को अध्र्य देगीं और 27 अक्टूबर की सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य देंगी। व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर और कार्तिक शुक्ल सप्तमी तक चलता है। धार्मिक मान्यता है कि घर में सुख-समृद्धि और संतान को लेकर यह पूजा की जाती है। छठ पूजा करने वाले को सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। व्रती की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह पूजा बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। नहाय खाय के दिन व्रती महिलाएं नहा-धोकर खाना बनाएंगी। शुद्ध शाकाहारी भोजन करेंगी। इस दिन खाने में कद्दू, दाल और अरवा चावल का अनिवार्य रूप से भोजन करेंगी।
Read more: पटाखा फोडऩा जरूरी नहीं, इन 5 तरीकों से भी मना सकते हैं हैप्पी दिवालीभोजन में गुड़ की खीर जरूरी नहाय खाय के बाद अगले दिन यानी 24 को खरना होगा। यह कार्तिक शुक्ल की पंचमी तिथि मनता है। इस दिन व्रतधारी दिनभर उपवास रख शाम को भगवान को प्रसाद का भोग लगाकर भोजन करते हैं। भोजन में गुड़ की खीर बनती है, जिसमें साठी का चावल विशेष रूप से होता है। इसके अलावा मूली, केला और पंचरंग होता है। इन सबको मिलाकर पूजा की जाती है। खरना के दिन किसी तरह की आवाज आने पर व्रतधारी खाना छोड़ देते हैं। इस दिन खासतौर पर ध्यान रखा जाता है कि व्रती के कान तक किसी भी तरह का शोर न आ पाए। क्योंकि जरा सा भी शोर हुआ तो व्रती उसी वक्त खाना छोड़ देगा।
मिट्टी के नए चुल्हें पर आम की सूखी लकड़ी से बनता है प्रसाद खरना का प्रसाद नए चुल्हे पर ही बनाया जाता है। चुल्हे की खासियत होती है कि यह मिट्टी का बना होता है और केवल आम की सूखी लकड़ी को ही जलाकर प्रसाद बनाया जाता है। व्रती महिलाएं एक बार जब प्रसाद ग्रहण करती हैं उसके बाद वो छठ पूजा समापन के बाद ही कुछ खा पाती हैं। खरना के अगले दिन सांझ को डूबते सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। इस दिन व्रती और परिजन घाट पर जाते हैं और वहां पर सूर्य भगवान की उपासना की जाती है। अगले दिन सूर्य उगने के समय उन्हें अघ्र्य देकर पूजा का समपन होता है। अघ्र्य घर के पुरुष, भाई, पति, पिता या ब्राö आदि देते हैं।
यह है मान्यता – मान्यता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राज-पाट हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। व्रत से दौपद्री की मनोकामना पूरे हो गई थीं। तभी से इस व्रत की प्रथा चल रही है। इसी प्रकार यह भी कहा जाता है कि सूर्य देव और छठी देवी का रिश्ता भाई-बहन का है।