भाजपा: आचार संहिता लगने के बाद जाएंगे पर्यवेक्षक
भाजपा इस वर्ष की शुरुआत से ही जमीनी हालात टटोलने में लगी हुई है। विधायकों के कामकाज को लेकर सर्वेक्षणों की शुरुआत तो काफी पहले हो गई थी। इस वर्ष कांग्रेस के कब्जे वाले क्षेत्रों में संभावित उम्मीदवारों के नाम की भी गोपनीय ढंग से तलाश हुई है। इस काम में समयदानी कार्यकर्ताओं की भी भूमिका रही है।
पिछली बार भी यही आधार
2013 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने टिकट वितरण का करीब-करीब ऐसा ही फार्मुला तय किया था। टिकटों की घोषणा भी नामांकन की तिथि के करीब हुई थी।
विकास यात्रा भी टिकट का आधार
पार्टी सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की विकास यात्रा भी टिकट का आधार बन सकती है। यात्रा का दूसरा चरण चल रहा है। पहले और दूसरे चरण में स्थानीय नेताओं का योगदान और सक्रियता का आकलन किया जा रहा है। इसकी रिपोर्ट बन रही है, टिकट पर चर्चा के समय नेता इस पर भी ध्यान रखेंगे।
कांग्रेेस: उम्मीदवार तय करने के करीब, चल रही मशक्कत
कांग्रेस ने इसबार टिकट वितरण का फॉर्मुला पूरी तरह बदल दिया है। इस बार सभी दावेदारों से ब्लॉक समितियों के जरिए आवेदन लिए गए। उन आवेदनों पर विधानसभा वार बूथ समितियों के अध्यक्षों, ब्लॉक पदाधिकारियों और विधानसभा समन्वयकों के बीच चर्चा हुई। वहां से सूची जिला कांग्रेस समिति और फिर प्रदेश चुनाव समिति तक पहुंची। प्रदेश चुनाव समिति ने तीन बैठकों में कुछ सीटों पर नाम फाइनल कर लिए हैं।
इन पर नजर
कांग्रेस इस बार भितरघात के खतरों से उबरना चाहती है। ऐसे में उसे सर्वस्वीकार्य और जिताउ उम्मीदवार पर ही दांव लगाने में सुभिता महसूस हो रही है। ऐसे में कुछ विधायकों का टिकट भी खतरे में है।
बदला फार्मूला
कांग्रेस में पिछली बार टिकट वितरण का फॉर्मुला बिल्कुल उलट था। दावेदारों ने आवेदन दिए थे। इस बार की तुलना में ज्यादा आवेदन आए थे। उन आवेदनों को मंगाकर पीसीसी की चुनाव समिति ने चर्चा की थी और छानबीन समिति को भेज दिया था। प्रदेश पदाधिकारियों से चर्चा के बाद उन्हें चुनाव प्राधिकरण भेजकर नाम फाइनल कर लिए गए थे।