मंच में पहुंचते बजी ताली
अंतिम कार्यक्रम कव्वाली की प्रस्तुति करने के लिए कव्वाल वारसी ब्रदर्श जैसे ही मंच पर पहुंचे तालियों की गडग़ड़ाहट सुनने को मिली। कव्वाली शुरू होने के बाद दर्शक दीर्घा में उपस्थित लोगों ने खुब आनंद उठाया। देर रात तक फरमाईश आती रही।
इसे तो दे दिया गया है अनेकों नाम पर होती है सिर्फ सूफियाना कव्वाली
रायगढ़. आजकल कव्वाली को कई नाम दे दिया गया है, जैसे प्रतियोगी कव्वाली, शराबी कव्वाली व अन्य, लेकिन कव्वाली एक ही होती है वो है सूफियाना कव्वाली। सूफी संतों के कलाम को सुनाना ही कव्वाली है। ये बातें हैदराबाद से आए कव्वाल वारसी ब्रदर्स के नजीर वारसी ने कही। प्रेस से चर्चा के दौरान उन्होने बताया कि कव्वाली सूफी संतों के कलाम को सुनाना है इसे पहले काफी कम लोग सुनते थे, लेकिन अमिर खुसरो और हजरत निजामुद्दिन औलिया ने आम लोगों तक पहुंचाने कहा जिसके बाद कद्रदानों की संख्या बढ़ी।
दादा को मिली थी पद्मश्री
वारसी ब्रदर्स के नजीर वारसी ने बताया कि उनके दादा अजीज अहमद खान वारसी पद्मश्री थे इसके बाद अब उनका उनका नाम कुछ समय पूर्व सरकार ने प्रस्तावित किया गया है। अगर हो सके तो काफी जल्द ही पद्मश्री का सम्मान भी मिल जाएगा।
आज इनकी प्रस्तुति
सोमवार को एक भारत श्रेष्ठ भारत गुजरात का कार्यक्रम है, वहीं अहमदाबाद की सुपर्वा मिश्रा की नृत्य वाटिका, रायपुर से हीरा मानिकपुरी का नाटक और ग्वालियर के हिमांशु द्विवेदी का नाटक है।