गणेश राख ने इस पुनीत कार्य को”बेटी बचाओ जन आंदोलन” नाम दिया है। इस जनआंदोलन से देश भर के लगभग दो लाख डॉक्टर, करीब 12 हजार संस्थाएं और लगभग 15 लाख स्वयंसेवक इस आंदोलन से जुड़े हुए हैं। इन दो लाख डॉक्टरों ने गणेश की तर्ज पर बच्चियों के जन्म पर फीस कम लेने से या फ्री करने का कार्य शुरू किया है।
हमाल न बनना पड़े इसलिए डॉक्टर बना
गणेश बचपन में पहलवान बनना चाहते थे। वे कुश्ती करते थे और घर आकर पूरा खाना खा जाते थे। घर के बाकी के लोग गणेश की इस हरकत से परेशान थे। वे बताते हैं, “मुझे कुश्ती बहुत पसंद थी, दिन भर कुश्ती के बाद भूख भी बहुत लगती थी। पढ़ाई में मेरा कतई मन नहीं लगता था। मैं डॉक्टर सिर्फ अपनी मां के कारण बना। उन्होने मुझे डराया कि अगर तू पढ़ाई नहीं करेगा, तो पिता की तरह कुली (बोरा उठाने वाले हमाल) का कार्य करना पड़ेगा। मां ने मुझे पिताजी के साथ काम पर भी भेजा। वहां पिता को दिन भर कड़ी मेहनत करते देख मैं डर गया और पढऩे लगा। मेरी मेहनत रंग लाई और मैं डॉक्टर बना।” डॉक्टर बनने के दौरान अपना खर्च निकालने के लिए गणेश रातों में अस्पतालों में काम करते थे। सोने को कम मिलता था, पर हमाल बनने से अच्छा तो जागना लगा।
पिता ने कहा आगे बढ़ो, जरूरत पड़ी तो मैं फिर से हमाल बन जाऊंगा
गणेश ने पुणे में में एक छोटा-सा क्लीनिकनुमा अस्पताल खोला। वे बताते हैं, “हमारे यहां एक युवती ने बेटी को जन्म दिया, तो उसके पति ने उसे मारा। रिश्तेदार भी नाराज हुए। मेरा मन भीतर से दुखी हो गया। अब तक मैंने सोचा भी नहीं था कि सोशलवर्क करूंगा। पर उस दिन उस युवती के गाल पर पड़ा थप्पड़ आज भी मेरे दिल में दर्द जगाता है। मैंने देखा था कि लोग, बेटों के जन्म पर उत्सव मनाते हैं, खुशी-खुशी अस्पताल की फीस भरते हैं। पर लड़कियों के समय में ज्यादातर दुखी मन से आते थे। मैंने तीन जनवरी 2012 में तय किया कि अस्पताल में पैदा होने वाली बच्चियों की फीस नहीं लूंगा। उनके जन्म पर भी सेलिब्रेशन करूंगा। मेरे दोस्तों और परिचितों ने मुझे पागल कहा। लोगों ने कहा पहले से ही लोन लिया है, कैसे करोगे यह सब? एक बार मैं भी डर गया, तभी मेरे पिता सामने आए और कहा यह बहुत अच्छा काम है। तुम शुरू करो, पैसे की जरूरत पड़ी तो मैं फिर से हमाल बन जाऊंगा।
मैं अपने पिता के साथ रहता हूं
जब गणेश से पूछा गया कि आपके पिता आपके साथ रहते हैं? उन्होंने कहा, “नहीं बिल्कुल नहीं मैं अपने पिता के साथ रहता हूं। मैं आज जो भी हूं अपनी आई और बाबा की वजह से हूं। मेरे अंदर की इंसानियत को इन्होंने ही प्रेरणा दी। हम संयुक्त परिवार में रहते हैं। हम तीन भाई अपने पिता के घर में रहते हैं। दूसरे डॉक्टरों के बच्चे बहुत हाईफाई रहते हैं, पर हम वैसा रहन-सहन अफोर्ड नहीं कर सकते। ऐसे में स्कूल जाने वाली मेरी छोटी-सी बेटी कहती है, मेरे पापा पैसे नहीं कमाते, पर वे अच्छा काम करते हैं।”
अमिताब बच्चन ने दी स्विफ्ट डिजायर
एक कार्यक्रम के दौरान अमिताब बच्चन को जब पता चला कि गणेश के पास कार नहीं हैं, तो वे चौंके और उन्होंने गणेश को स्विफ्ट डिजायर भेंट की। गणेश इसका उपयोग भी बहुत कम करते हैं, वे स्कूटी से अस्पताल में जाते हैं। बेटियों को बचाने के अभियान को देश भर में फैलाने के लिए वे स्लीपर क्लास में यात्रा करते हैं। वे कहते हैं अगर बेटियां न होती तो हम कहां से होते। बेटियों को बेटों के बराबर मानना ही समाज को बेहतर दिशा में ले जा सकता है।