2014 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद से ही अतीक अहमद का राजनीतिक ग्राफ तेजी से गिरने लगा था। 2017 चुनाव के पहले शुआट्स मामले में मुश्किलें बढ़ने के बाद अखिलेश यादव ने उनका टिकट काट दिया। सरकार बदलने पर उनकी मुश्किलें और बढ़ गई। इसी बीच फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में अतीक ने समाजवादी पार्टी के खिलाफ ही ताल ठोक दिया। इसके बाद सपा से उनके रिश्ते खत्म हो गये। अब अतीक के पास कोई ऐसी जनाधार वाली पार्टी नहीं है जिसके सहारे वो अपने राजनीतिक कैरियर को फिर से उभार दे सकें।
रही बात राजा भैया की पार्टी जनसत्तादल लोकतांत्रिक की तो इधर सपा-बसपा गठबंधन और प्रियंका गांधी के राजनीति में आने के बाद यूपी और खास तौर से पूर्वांचल के सियासी समीकरण तेजी से बदले हैं। ऐसे में अगर राजाभैया को मजबूत कैंडिडेट नहीं मिलते हैं तो लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का हाल अमर सिंह की पार्टी जैसा भी हो सकता है।
कुशीनगर या कानपुर से उम्मीदवार हो सकते हैं अतीक अंदरूनी खबरों की मानें तो कानपुर या कुशीनगर से अतीक अहमद उम्मीदवार हो सकते हैं। इसके पीछे ये कहा जा रहा है कि कानपुर में अतीक अहमद का कारोबार बड़े स्तर पर फैला है। उन्हे वहां के लोग जानते हैं। इसके पहले भी अतीक कानपुर से चुनाव लड़ने के लिए काफी तैयारी की थी। वहीं कुशीनगर को लेकर कहा जाता है कि उस लोकसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की तादात काफी अधिक है इसके साथ ही अतीक के व्यापारिक रिश्ते उस क्षेत्र में काफी मजबूत माने जाते हैं। राजाभैया की पार्टी चाहती है कि अतीक अगर इन दो सीटों में से किसी पर भी चुनाव लड़े और उन्हे मुस्लिम मतदाताओं के साथ क्षत्रिय वोटरों का साथ मिला तो वो आसानी से चुनाव जीतकर पार्टी को मजबूत कर सकते हैं।