दुष्चक्र में कैसे फंसे किंगमेकर
खास बात ये है कि एक दौर में किंगमेकर की भूमिका निभाने वाले लालू व उनकी पार्टी इस दुष्चक्र में कैसे फंसी इसका जवाब ढूंढने की स्थिति में वो नहीं है। न ही उनकी फौज में इतनी बड़ी राजनीतिक समझ है कि वो इस सवाल का जवाब ढूंढ सकें। या फिर ये भी हो सकता है कि सांप्रदायिक और धर्मनिरपेक्षता का झंडा बुलंद करने का खामियाजा उन्हें आज भुगतना पड़ रहा हो।
खास बात ये है कि एक दौर में किंगमेकर की भूमिका निभाने वाले लालू व उनकी पार्टी इस दुष्चक्र में कैसे फंसी इसका जवाब ढूंढने की स्थिति में वो नहीं है। न ही उनकी फौज में इतनी बड़ी राजनीतिक समझ है कि वो इस सवाल का जवाब ढूंढ सकें। या फिर ये भी हो सकता है कि सांप्रदायिक और धर्मनिरपेक्षता का झंडा बुलंद करने का खामियाजा उन्हें आज भुगतना पड़ रहा हो।
ध्रुवीकरण के शिकार
इस बारे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भारतीय लोकतंत्र वर्तमान में सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में जो समाज को पोलराइज्ड करने का काम शुरू हुआ था आज वो चरम सीमा पर पहुंच गया है। विपक्षी पार्टियों को निशाना बनाने के लिए मॉब लिंचिंग, ऑनलाइन ट्रोलिंग, जातीय दंगाउच्च शिक्षा संस्थानों पर हमला, सीबीआई और ईडी को ढाल बनाया जा रह है। आज जिस दौर में भारतीय राजनीति है उसे वहां तक पहुंचाने में लालू जैसे क्षत्रपों की भूमिका अहम रही है। लेकिन आज वो अपनी ही राजनीतिक ताने-बाने में फंसे नजर आ रहे हैं। ऐसा इसलिए कि उन्होंने जिस एमवाई फार्मूले पर जोर दिया था वो अब कमजोर पड़ने लगा है।
इस बारे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भारतीय लोकतंत्र वर्तमान में सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में जो समाज को पोलराइज्ड करने का काम शुरू हुआ था आज वो चरम सीमा पर पहुंच गया है। विपक्षी पार्टियों को निशाना बनाने के लिए मॉब लिंचिंग, ऑनलाइन ट्रोलिंग, जातीय दंगाउच्च शिक्षा संस्थानों पर हमला, सीबीआई और ईडी को ढाल बनाया जा रह है। आज जिस दौर में भारतीय राजनीति है उसे वहां तक पहुंचाने में लालू जैसे क्षत्रपों की भूमिका अहम रही है। लेकिन आज वो अपनी ही राजनीतिक ताने-बाने में फंसे नजर आ रहे हैं। ऐसा इसलिए कि उन्होंने जिस एमवाई फार्मूले पर जोर दिया था वो अब कमजोर पड़ने लगा है।
सियासी भूल
यही कारण है कि लालू यादव भले ही चारा घोटले में सजा काट रहे हों और बीमार होने की वजह से रिम्स रांची में उपरचार करवा रहें पर उनकी चर्चा भी लाजिमी हो जाता है। दरअसल, लालू प्रसाद यादव ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत के दिनों से कभी भी आरएसएस और उन जैसे तमाम संगठनों के साथ समझौता नहीं किया। उन्होंने सामाजिक न्याय पर जोर दिया लेकिन ये भी सच है कि जातीय तनाव को जाने अनजाने में उन्होंने ही बढ़ावा दिया था। अब उनके बेटे तेजस्वी यादव ने कई मौकों पर कहा है कि अगर मेरे पिताजी भाजपा के साथ हाथ मिला लेते, तो वह उनके लिए राजा हरिश्चंद्र बन जाते। तो क्या यह मान लिया जाए कि लालू को लालू होने की सजा में मिल रहा है। इस मुद्दे पर राजनीतिक जानकार अलग-अलग राय रखते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि किंगमेकर होने के बाद भी लालू सियासी ताने-बाने का समग्रता में लेकर नहीं चल पाए। जबकि उन्हीं के साथ राजनीतिक करने वाले नीतिश बहुत हद तक उसमें सफल रहे। लेकिन एक बात पर सभी सहमत दिखाई देते हैं कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्यों की तुलना में उनके साथ कुछ ज्यादा ही ज्यादाती हुई है।
यही कारण है कि लालू यादव भले ही चारा घोटले में सजा काट रहे हों और बीमार होने की वजह से रिम्स रांची में उपरचार करवा रहें पर उनकी चर्चा भी लाजिमी हो जाता है। दरअसल, लालू प्रसाद यादव ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत के दिनों से कभी भी आरएसएस और उन जैसे तमाम संगठनों के साथ समझौता नहीं किया। उन्होंने सामाजिक न्याय पर जोर दिया लेकिन ये भी सच है कि जातीय तनाव को जाने अनजाने में उन्होंने ही बढ़ावा दिया था। अब उनके बेटे तेजस्वी यादव ने कई मौकों पर कहा है कि अगर मेरे पिताजी भाजपा के साथ हाथ मिला लेते, तो वह उनके लिए राजा हरिश्चंद्र बन जाते। तो क्या यह मान लिया जाए कि लालू को लालू होने की सजा में मिल रहा है। इस मुद्दे पर राजनीतिक जानकार अलग-अलग राय रखते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि किंगमेकर होने के बाद भी लालू सियासी ताने-बाने का समग्रता में लेकर नहीं चल पाए। जबकि उन्हीं के साथ राजनीतिक करने वाले नीतिश बहुत हद तक उसमें सफल रहे। लेकिन एक बात पर सभी सहमत दिखाई देते हैं कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्यों की तुलना में उनके साथ कुछ ज्यादा ही ज्यादाती हुई है।
मीडिया ट्रायल के शिकार
देश की मुख्यधारा की मीडिया ने हमेशा लालू का माखोल उड़ाया। शुरुआती दिनों में इस बात को अपने अंदाज में लालू यादव हवा में उड़ाते रहे लेकिन अब यही उन पर भारी पड़ने लगा है। मीडिया ने उनकी नकारात्मक छवि बनाई। मीडिया के इस काम में कहीं न कहीं उनका योगदान भी कम नहीं रहा। मीडिया ने देवघर जिला ट्रेजरी मामले को चारा घोटाला के रूप में रोजाना प्रचारित किया। वो इस बात को समझ नहीं पाए।
देश की मुख्यधारा की मीडिया ने हमेशा लालू का माखोल उड़ाया। शुरुआती दिनों में इस बात को अपने अंदाज में लालू यादव हवा में उड़ाते रहे लेकिन अब यही उन पर भारी पड़ने लगा है। मीडिया ने उनकी नकारात्मक छवि बनाई। मीडिया के इस काम में कहीं न कहीं उनका योगदान भी कम नहीं रहा। मीडिया ने देवघर जिला ट्रेजरी मामले को चारा घोटाला के रूप में रोजाना प्रचारित किया। वो इस बात को समझ नहीं पाए।