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हरियाणा में ‘धंसेगा’ भाजपा का विजय रथ !

locationनई दिल्लीPublished: Feb 19, 2019 05:31:01 pm

Submitted by:

Navyavesh Navrahi

2014 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश के 10 में से सात सीटों पर भाजपा भारी बहुमत के साथ जीती थी लेकिन 2019 के चुनाव में फरीदाबाद और गुड़गांव सीटों के अलावा अन्य सीटों पर भाजपा को नए चेहरों को मैदान पर उतारना मजबूरी हो गया है।

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हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने का दावा कर रही भाजपा के लिए 8 सीटें बड़ी सिरदर्दी बनती ही नजर आ रही हैं। अलग-अलग कारणों से जहां अंबाला, कुरुक्षेत्र , करनाल, सोनीपत , भिवानी-महेंद्रगढ की 5 लोकसभा सीटें दोबारा जीतना भाजपा के लिए हरगिज आसान नजर नहीं आ रहा है वहीं रोहतक हिसार और सिरसा लोकसभा सीटों पर पहली बार जीत दर्ज करना एवरेस्ट चढ़ने के समान लग रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश के 10 में से सात सीटों पर भाजपा भारी बहुमत के साथ जीती थी लेकिन 2019 के चुनाव में फरीदाबाद और गुड़गांव सीटों के अलावा अन्य सीटों पर भाजपा को नए चेहरों को मैदान पर उतारना मजबूरी हो गया है। आठ सीटों पर भाजपा की परेशानियां अलग अलग नजर आ रही है।
अंबाला में क्या है सिरदर्दी?

भाजपा के लिए अंबाला लोकसभा सीट बड़ी सिरदर्दी बनती हुई नजर आ रही है। भाजपा के वर्तमान सांसद रतन लाल कटारिया की सेहत जहां लगातार ढीली चल रही है वहीं उनकी लोकप्रियता का ग्राफ भी ढलान पर आ चुका है। अगर कांग्रेस की तरफ से पूर्व मंत्री कुमारी शैलजा ने अंबाला सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा तो भाजपा के लिए यहां दोबारा जीत हासिल करना मुमकिन नहीं होगा।
भाजपा के खिलाफ राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी व बसपा गठबंधन भी बड़ी अड़चन बनता हुआ दिख रहा है। पिछली बार सैनी वोटर भाजपा के साथ लामबंद हुए थे। अंबाला संसदीय क्षेत्र में लगभग सवा लाख सैनी वोटर हैं। इस बार यह वोटबैंक भाजपा से दूर रहेगा। अंबाला सीट बसपा के खाते में आने की उम्मीद है बसपा का प्रत्याशी भाजपा प्रत्याशी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है क्योंकि बसपा प्रत्याशी जितने अधिक वोट लेगा वह भाजपा के खाते से ही निकल कर जाएंगे।
भाजपा हाईकमान रतन लाल कटारिया का विकल्प गंभीरता के साथ तलाश रहा है लेकिन अभी तक दमदार विकल्प नहीं मिल पाया है। ऐसे में भाजपा को रतन लाल कटारिया की पत्नी बंतो कटारिया को मजबूरी में चुनाव लड़ाना पड़ सकता है। बंतो की जीत या हार कांग्रेस, जेजेपी और बसपा के प्रत्याशियों पर निर्भर करेगी।
कुरुक्षेत्र का क्या है चक्रव्यू?

2014 में कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर जीत का डंका बजाने वाली भाजपा के लिए इस बार विपरीत हालात नजर आ रहे हैं। वर्तमान सांसद राजकुमार सैनी भाजपा से बागी हो चुके हैं और नई पार्टी का गठन कर चुके हैं। राजकुमार सैनी कुरुक्षेत्र संसदीय सीट पर ही भाजपा को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने का काम करेंगे। कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र में लगभग डेढ़ लाख सैनी वोटर हैं। पिछली बार यह वोटबैंक एकतरफा भाजपा के साथ लामबंद रहा था। इस बार वह भाजपा के खिलाफ वोट डालने का काम करेंगे।
सैनी वोटरों की नाराजगी से बचने के लिए भाजपा ने तमाम परेशानियां खड़ी करने के बावजूद राजकुमार सैनी को पार्टी से निष्कासित नहीं किया है। सैनी बार बार भाजपा हाईकमान को आंखें दिखाने का काम करते हैं लेकिन इसके बावजूद उनको पार्टी से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया गया।लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी का प्रत्याशी जितने अधिक वोट हासिल करेगा वह भाजपा के लिए उतना ही बड़ा नुकसान साबित होगा। भाजपा कुरुक्षेत्र सीट पर किसी बड़े चेहरे को हराने की प्लानिंग कर रही है लेकिन अभी तक भाजपा को जीत का परचम फहराने लायक चेहरा नहीं मिल पाया है।
करनाल में क्या है गंभीर सवाल?

2014 के चुनाव में भाजपा ने करनाल लोकसभा सीट बड़े अंतराल के साथ जीती थी। 2019 के चुनाव में भी भाजपा जीत के सिलसिले को बरकरार रखना चाहती है। यह लक्ष्य हासिल करने में भाजपा के वर्तमान सांसद अश्वनी चौपड़ा ही बाधा बनते हुए दिख रहे हैं।
अश्विनी चोपड़ा की सेहत जहां लगातार खराब चल रही है वही जनता में भी उनके प्रति व्यापक नाराजगी देखने को मिल रही है। अश्विनी चोपड़ा की पत्नी किरण चोपड़ा उनकी जगह चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुकी हैं लेकिन भाजपा हाईकमान किरण चोपड़ा पर किसी भी सूरत में दाव नहीं लगाएगा क्योंकि किरण चोपड़ा की जीत में बड़ा सवालिया निशान नजर आता है।
भाजपा हाईकमान करनाल सीट पर भी किसी बड़े चेहरे की तलाश कर रहा है। केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के करनाल लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के प्रबल आसार नजर आ रहे हैं। अगर मेनका गांधी ने करनाल से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा तो भाजपा के लिए वह शशक्त प्रत्याशी साबित होंगी।
सोनीपत के क्यों बदले समीकरण?

जाटलैंड का दिल कही जाने वाली सोनीपत लोकसभा सीट पर भाजपा ने पिछली बार रसूखदार जीत हासिल की थी लेकिन इस बार माहौल बदला हुआ है वर्तमान सांसद रमेश कौशिक भाजपा छोड़ने की तैयारी कर चुके थे लेकिन मेल और जींद उपचुनाव के परिणाम भाजपा के पक्ष में आने के बाद उन्होंने पलटी मार ली और वह दोबारा भाजपा के गुणगान कर रहे हैं रमेश कौशिक के प्रति सोनीपत लोकसभा क

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