दरअसल, प्रशांत किशोर भाजपा और नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर 2012 में गुजरात में इलेक्शन कैम्पेन किया था और भाजपा को चुनावी जीत मिली थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में वो नरेंद्र मोदी व भाजपा के प्रमुख रणनीतिकारों में से एक थे। लेकिन लोकसभा चुनाव जीतने और मोदी का पीएम बनने के बाद भाजपा में उनकी उपेक्षा होने लगी थी। साथ ही सरकार गठन के बाद उनका अमित शाह के साथ अच्छे संबंध नहीं रहे। इसलिए उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ दिया था।
2015 में सबको चौंकाया
दूसरी तरफ वर्ष 2013 में नीतीश कुमार भाजपा से अलग हो चुके थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को बिहार में काफी सीटें मिली। इससे जदयू खेमें में आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जीत को लेकर एक संशय का माहौल बन गया था। नीतीश कुमार को पीके जैसे रणनीतिकारों की जरूरत थी जो भाजपा को बिहार में पटखनी देने में उनकी मदद करे। चुनाव से पहले प्रशांत किशोर से नीतीश कुमार ने संपर्क किया और नीतीश ने बिना देर किए उनका हाथ थाम लिया था। 2015 में प्रशांत किशोर की बनाई रणनीति का नीतीश कुमार को उसका फायदा हुआ। पीके ने सभी को चौंकाते हुए बिहार में मोदी लहर को पहली बार करारी शिकस्त दी। इतना ही नहीं मोदी की लोकप्रियता के बाजवूद भाजपा हार का मुंह देखना पड़ा था। नीतीश पांचवीं बार बिहार के सीएम बनने में कामयाब हुए।
बिहार चुनाव के बाद प्रशांत किशोर का जादू कहीं नहीं चल सका। उत्तर प्रदेश में वे कांग्रेस पार्टी के अभियान की रूपरेखा तय करने गए। खाट सभा करवाई। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की खटिया खड़ी हो गई। उसके बाद प्रशांत किशोर पंजाब में कांग्रेस के अमरिंदर सिंह को सत्ता में पहुंचाने के लिए चले गए लेकिन बीच चुनाव में ही किसी बात को लेकर वे चुनाव अभियान से अलग हो गए। उसके बाद से वो दक्षिण भारत में किसी काम में व्यस्त हैं। बताया जाता है कि प्रशांत किशोर महागठबंधन के टूटने से निराश थे। इसका इजहार करने पर नीतीश कुमार ने कैबिनेट मंत्री का दर्जा छीन लिया था। उनका कहना था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार विपक्ष की ओर से पीएम पद का चेहरा बन सकते थे। भाजपा के साथ आ जाने से कई संभावनाओं पर पानी फिर गया है। लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश और प्रशांत ने आपस में बातचीत और बात बन गई। लेकिन इस बार पीके एक चुनावी रणनीतिकार के रूप में नहीं बल्कि राजनेता के रूप में जेडीयू से जुड़ गए हैं। बताया जा रहा है कि अब इसका लाभ जेडीयू और भाजपा को 2019 में मिल सकता है।