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भारत ही नहीं एशिया का भविष्य भी तय करेंगे नए मतदाता, मुद्दे हैं- नौकरी व अर्थव्यवस्था

locationजयपुरPublished: Jan 18, 2019 05:16:58 pm

Submitted by:

manish singh

हाल ही कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत ने राहुल गांधी को मजबूत बनाने के साथ उन्हें मोदी सरकार पर हमलावर होने का मौका दिया है। तीनों राज्यों में कर्जमाफी के आधार पर वे पीएम नरेंद्र मोदी से भी राष्ट्रीय स्तर पर किसानों का कर्जा माफ करने की मांग कर रहे हैं। वहीं मोदी मध्यवर्गीय परिवारों को रिझाने के लिए ऐन मौके पर प्रभावी नीति बना रहे हैं।

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भारत ही नहीं एशिया का भविष्य भी तय करेंगे नए मतदाता, मुद्दे हैं- नौकरी व अर्थव्यवस्था

2019 के मध्य में एशिया के दो बड़े लोकतांत्रिक देश अपने साथ पूरे एशिया का भविष्य तय करेंगे। भारत में 40 करोड़ जबकि इंडोनेशिया में 7.9 करोड़ नए मतदाता देश में नई सरकार का भविष्य तय करेंगे। खास बात ये है कि ये मतदाता वर्ष 1982 से 2001 के बीच जन्मे हैं और आधे से अधिक पहली बार मताधिकार का प्रयोग करेंगे। दोनों देशों में चुनावी मुद्दा ‘नौकरी’ और ‘अर्थव्यवस्था’ है जहां पढ़ी लिखी आबादी तय करेगी कि सत्ता की चाबी किसे सौंपनी है।

भारत में बेरोजगारी को लेकर देशभर के युवाओं में गुस्सा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाकर मैदान में उतरते हैं तो चुनाव परिणामों की तस्वीर बदल सकती है। राहुल फिलहाल पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को 2019 के लोकसभा चुनाव का मुद्दा बनाने में लगे हैं, जो कुछ हद तक ठीक भी है क्योंकि इससे सबसे अधिक प्रभावित किसान और छोटे उद्यमी हुए थे। इसी तरह इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो 7 अप्रेल को होने वाले मतदान में दूसरा मौका चाहते हैं। इस वादे के साथ कि वे उद्योग जगत में जान फूंक देंगे।

हालांकि इंडोनेशिया अब भी 1998 के आर्थिक संकट से उबर नहीं पाया है। वहां बेरोजगारी की दर 9 फीसदी है जिसकी भरपाई सरकार के लिए चुनौती है। राष्ट्रपति जोको मूलभूत ढांचे में निवेश के लिए जाने जाते हैं। इनके विरोधी पूर्व जनरल प्रबॉव सुबियांतों ने राष्ट्रहित को लेकर चीन के बेल्ड एंड रोड इनीशिएटिव और सिग्नेचर हाई स्पीड रेल प्रोजेक्ट को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया है। वे निजी क्षेत्रों को रिझाने में लगे हैं जिससे कर की दरों के साथ सरकारी खर्च में कटौती संभव हो सकेगी। चुनावी साल में तेल की कीमतें मोदी और इंडोनेशियाई राष्ट्रपति के लिए परीक्षा की घड़ी है। दोनों देशों में जनता को इनकी कीमतों में स्थिरता की उम्मीद है।

भारत और इंडोनेशिया के लिए फेडरल रिजर्व नीति कई मायनों में 2019 के लिए महत्वपूर्ण होगी। अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्याज दरों में तीन बार बढ़ोतरी के बाद विराम लग जाए तो दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा। 2018 में भारत और इंडोनेशिया की मुद्रा को नुकसान हुआ। इसका नतीजा ये रहा कि दोनों देश की मुद्रा सबसे खराब या निचले स्तर पर रही। भारत में केंद्रीय बैंक से राहत की उम्मीद रहेगी। जिससे वित्तीय स्थितियों में सुधार हो सके। ब्याज दरों में कटौती और चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर निवेश स्थितियों को सरकार के अनुकूल बनाने में मदद करेगा। इंडानेशिया में चालू खाता घाटा बढऩे की उम्मीद है। पाल्म ऑयल और प्राकृतिक रबर की कीमतों में गिरावट से अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा और निर्यात धीमा रहेगा।

सोशल मीडिया भी असरदार भूमिका में

2019 के आमचुनावों में सोशल मीडिया असरदार भूमिका में रहेगा। विश्लेषकों का मानना है कि सोशल मीडिया के साथ वाट्सऐप मैसेजिंग भारत में चुनाव परिणामों पर असर डाल सकता है। भारत में करीब 25 करोड़ से अधिक लोग वाट्सऐप का इस्तेमाल करते हैं। वहीं इंडोनेशिया में हर तीसरा व्यक्ति फेसबुक का इस्तेमाल करता है जिसका चुनावों में असर दिखेगा। फेक न्यूज से निपटना भी बड़ी चुनौती है। चुनाव प्रचार से लेकर पोलिंग बूथों पर मतदान के दिन तक फर्जी खबरें स्थिति को बिगाड़ सकती हैं। ऐसे में चुनाव आयोग के साथ आम जनता की भागीदारी निर्णायक होगी।

एैंडी मुखर्जी, औद्योगिक और वित्तीय सेवाओं के साथ विदेशी मामलों के जानकार हैं। (वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत)

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