उनके इस बयान से साफ है कि लोकसभा चुनाव को लेकर एनडीए ने जिस फार्मूले पर टिकटों का बंटवारा तय किया है उससे उपेंद्र कुशवाहा झल्लाए हुए हैं। इस फार्मूले के तहत उनकी पार्टी आरएलएसपी को केवल दो सीटें दी गई हैं। जबकि उन्हें तीन से पांच सीटों की उम्मीद थी। वो कहते भी रहें कि बढ़ी हुई ताकतों के अनुरूप उनकी पार्टी को सीट मिले। लेकिन सवा साल पहले लालू को छोड़कर एनडीए खेमे में नीतीश के आने से उनका समीकरण बिगड़ गया। बताया जाता है कि अपनी उपेक्षा के लिए वो नीतीश को दोषी मानने लगे हैं। बिहार के राजनीति के जानकारों का कहना है कि वो एनडीए नहीं छोड़ना चाहते लेकिन भाजपा और जेडीयू ने जिस स्थिति में उन्हें ला खड़ा किया है उसमें न तो वो एनडीए छोड़ पा रहे हैं न हीं यहां बने रहने के लिए उनके पास कोई वजह शेष बचा है। यही कारण है कि कार्यकर्ताओं की शिकायत पर उन्होंने कहा कि जो अधिकारी न मानें उनकी गर्दन पकड़ समझा दिया करो। यानी शाह और नीतीश से सीधे नाराजगी जाहिर न कर उन्होंने अपना मैसेज कार्यकर्ताओं के जरिए पहुंचा दिया है।
केंद्रीय मंत्री कुशवाहा ने पहली बार 2015 विधानसभा चुनाव में एनडीए की हार पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि पिछले चुनाव में बिहार में एनडीए की खटिया खड़ी हो गई थी। कुशवाहा पर आरोप लगते रहे हैं कि विधानसभा चुनावों में वो अपने वोटों को एनडीए के पक्ष में ट्रांसफर नहीं करा पाए। अब उनके शब्दों के चयन से लगता है कि उन्होंने भी थोड़ी आक्रामक भाषा का प्रयोग शुरू कर दिया है। उनकी ये भाषा गठबंधन में उपेक्षा से उत्पन्न नाराजगी का प्रतीक है। इतना ही नहीं शनिवार को पटना में सीएम नीतीश कुमार द्वारा कथित रूप से केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को नीच कहे जाने पर आरएलएसपी ने विरोध मार्च निकालने का भी निर्णय लिया है।