भागवत के बयान के बाद मोदी सरकार पर दबाव
इस बात से भी हर कोई अच्छी तरह वाकिफ है कि अगर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मंदिर का निर्माण नहीं हुआ तो भाजपा को इसका काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है और अब भागवत के बयान के बाद मोदी सरकार पर दबाव जरूर बन गया है। ऐसे में अब सवाल खड़ा होता है कि मंदिर निर्माण की दिशा में सरकार क्या कदम उठाएगी? अगर सरकार मंदिर निर्माण के लिए संसद के जरिए कानून बनाने वाले विकल्प पर विचार करती है तो फिर आगामी शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार को इससे संबंधित प्रस्ताव लाना होगा।
संत समाज भी दे चुका है मोदी सरकार अल्टीमेटम
अगर मोहन भागवत के बयान को छोड़ भी दिया जाए तो जमीनी हकीकत भी यही है कि भाजपा और संघ के कार्यकर्ता लगातार सरकार से मंदिर के निर्माण के लिए कोई ना कोई ठोस कदम उठाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। इन सबके अलावा भारत के संत समाज ने भी सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है कि अगर 6 दिसंबर से पहले राम मंदिर को लेकर कानून नहीं लाया गया तो कार सेवा के जरिए मंदिर का निर्माण किया जाएगा। हालांकि इन सबके बीच अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी इंतजार है।
शीतकालीन सत्र में लाना होगा राम मंदिर से संबंधित विधेयक
सभी परिस्थितियों को मिलाकर केंद्र की मोदी सरकार के पास अब एक ही रास्ता नजर आ रहा है और वो है संसद के जरिए राम मंदिर के लिए कानून बनाया जाए। भाजपा को राम मंदिर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को स्थापित करने के लिए आगामी शीतकालीन सत्र में राम मंदिर के विधेयक को रखना होगा। वो इसलिए भी क्योंकि 2019 के चुनाव से पहले शीतकालीन सत्र ही आखिरी सत्र होगा। हालांकि इसके बाद आपातकालीन सत्र का भी रास्ता खुला रहेगा या फिर अध्यादेश के जरिए भी मंदिर निर्माण का रास्ता साफ किया जा सकता है। इससे बीजेपी को फायदा ये हो सकता है कि लोगों के बीच चुनाव से ठीक पहले यह संदेश जाएगा कि सरकार की मंशा राम मंदिर निर्माण की है।