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सरकार को करना पड़ेगा संविधान में संशोधन
आपको बता दें कि मोदी सरकार को जजों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने के लिए संविधान में संसोधन करने की जरूरत होगी। हालांकि सरकार इसके लिए सदन में उच्चतर अदालतों में जजों की भारी कमी का हवाला दे सकती है। बता दें कि विधि मंत्रालय के ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देशभर के 24 हाईकोर्ट में जजों के 406 पद खाली पड़े हैं। वहीं देश भर की विभिन्न अदालतों में करीब तीन करोड़ केस पेंडिंग हैं। विधि मंत्रालय के आंकड़ों में बताया गया है कि, ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों के 56 पद, कर्नाटक हाईकोर्ट में 38 पद, कलकत्ता हाईकोर्ट में 39, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में 35, आंध्र व तेंलगाना हाईकोर्ट में 30 और बंबई हाईकोर्ट में जजों के 24 पद खाली हैं।’
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इससे पहले भी हो चुकी है सिफारिश
बता दें कि इससे पहले भी जजों के रिटायरमेंट की उम्र सीमा को बढ़ाने के लिए सिफारिश हो चुकी है। उच्चतर अदालतों में जजों की कमी को देखते हुए एक संसदीय समिति ने सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने का अनुरोध किया था। उस समय कहा गया था कि भविष्य में खाली होने वाले सभी पद 1993 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय दिशानिर्देशों के आधार पर ही भरे जाएं। समिति ने इसके साथ ही मौजूदा जजों की उम्र सीमा बढ़ाने की सिफारिश करते हुए कहा है, ‘इससे मौजूदा जजों की सेवा विस्तार में मदद मिलेगा और जिससे जजों की कमी तुरंत दूर करने और पेंडिंग केसों को निपटाने में मददगार साबित होगा।’ इससे पहले वर्ष 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने भी हाईकोर्ट के जजों की उम्र सीमा 62 से 65 साल करने का बिल पेश किया था, लेकिन वर्ष 2014 में 15वीं लोकसभा के भंग होने के कारण यह विधेयक निरस्त हो गया था।