पश्चिमी महाराष्ट्र के सोलापुर जिला की सांगोल सीट से विधायक रहे देशमुख का नाम सबसे लंबे समय तक विधायक रहने के रिकॉर्ड में द्रमुक के दिवंगत अध्यक्ष एम. करुणानिधि के बाद दूसरे स्थान पर है। जहां देशमुख 56 सालों तक विधायक रहे, वहीं करुणानिधि तमिलनाडु विधानसभा में 13 बार चुनकर 61 बार विधायक रहे थे। गौरतलब है कि छात्र जीवन से ही वामपंथी विचारधारा से प्रभावित और प्रतिष्ठित देशमुख 1962 में विधायक बने थे जब आज के दौर के कई नेता या तो पैदा ही नहीं हुए थे या राजनीति में नहीं थे।
इसके बाद 1972 और 1995 को छोड़कर उन्होंने सभी चुनाव जीते। इस दौरान वे 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार की अगुआई वाली सरकार और उसके बाद 1999 में दिवंगत मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की अगुआई वाली सरकार में मंत्री रहे। पार्टी और प्रदेश की राजनीति में देशमुख की प्रतिष्ठा को जानते हुए भी पीडब्ल्यूपी ने उनके चुनाव न लड़ने के फैसले को स्वीकार करते हुए उद्योगपति भाऊसाहेब रूपनार को चुनाव लड़ाने का फैसला किया। हालांकि, इस फैसले से उपजे भारी असंतोष को देखते हुए पीडब्ल्यूपी ने अपना फैसला बदलते हुए देशमुख के पोते अनिकेत देशमुख को उम्मीदवार बनाया है।