रैलियों के लिए चर्चित लालू यादव की यह रैली भाजपा विरोधी जुटान के अलावा इसलिये भी चर्चा में है कि बाढ़ और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद बड़ी संख्या में हर जगह से चलकर समर्थक गांधी मैदान पहुंचे और बारिश के बावजूद अपने नेता को सुनने डटे रहे। हालांकि अपनी पिछली रैलियों के मुकाबले भीड़ का रिकॉर्ड लालू प्रसाद नहीं तोड़ पाए। लालू यादव की सबसे बड़ी रैली 1995 की गरीब रैली मानी जाती है।
रविवार को आयोजित लालू के राजनैतिक जीवन की यह सातवीं रैली है। इससे पूर्व 2012 में परिवर्तन रैली, 2005 में चेतावनी रैली, 2003 में लाठी जुटावन-तेल पिलावन रैली, 97 में महागरीब रैली और 96 में गरीब रैला का आयोजन किया गया था। भाजपा भगाओ रैली में लालू यादव के तीन मकसद एकसाथ सधते हुए दिखे। एक तो भाजपा विरोधी दलों को जुटाकर देश भर में भाजपा के खिलाफ शंखनाद । दूसरा अपने उत्तराधिकारी के बतौर बेटे तेजस्वी और तेजप्रताप को अपने समर्थकों में भावी नेता की तरह जिम्मेदारी सौंप देना और तीसरा यह कि नीतीश के अलग होने के बावजूद महागठबंधन को मूल स्वरूप में पेश करते हुए खुद को जनता का नेता और असली किंगमेकर साबित कर दिखाना।
जानकार कहते हैं कि लालू इन तीनों मकसद में कामयाब रहे। साथ ही रैली के बहाने 17 दलों, चार पूर्व मुख्यमंत्रियों और एक मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को मंच पर उतारकर लालू प्रसाद ने आगे की लड़ाई की ज़मीन तैयार कर दी। शरद यादव को साथ मिला कर गले लगाने का भी इतिहास रच डाला।
रैली ने साफ कर दिया कि नीतीश के पलट जाने से लालू के समर्थक बेहद आहत हैं। भीड़ की भाषा और पहली बार लालू के लोगों में दिखे अनुशासन से यह भी स्पष्ट हो गया कि राजद का जनाधार अगले जनादेश की तैयारी में है। इसके संदेश को भाजपा के लिए खतरनाक माना ज रहा है।
लालू प्रसाद यादव की भाजपा भगाओ देश बचाओ महारैली में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 2019 में भाजपा के देश से सफाया होने और विपक्ष के सत्ता में आने का दावा किया। साथ ही उन्होंने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर झूठे वादा करने और केन्द्रीय जांच एजेंसियों से विरोधी दलों को डराने का आरोप लगाया। उन्होंने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के जुबान का पक्का होने और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर बिहार की जनता को धोखा देने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि मोदी 2022 की बात कर रहे हैं। अगर नसबंदी के कारण इंदिरा गांधी सत्ता से बाहर हो गई तो मोदी क्या चीज हैं। नोटबंदी के कारण 2019 में भाजपा सत्ता से बाहर हो जाएगी। सब रहेंगे, लेकिन भाजपा नहीं रहेगी। अगर विपक्ष एक रहेगा तो केन्द्र में सरकार विपक्ष की होगी। देश से भाजपा को भगाने का यह शुभ मुहूर्त है। उन्होंने कहा कि अगर युवा बेरोजगारी के खिलाफ आंदोलन करेंगे तो विपक्षी दल उनका समर्थन करेंगे।