प्रदेश की राजनीति में उबाल ऐसे ही नहीं उठा है…इसके पीछे भी कुछ वजह हैं। इनमें सबसे पहले बात करते हैं नेकां अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला की, जो कुछ समय पहले तक सियासत में लगभग निष्क्रिय थे, अब पूरी तरह सक्रिय हो गए हैं। वह दिल्ली से कश्मीर के राजभवन तक नजर आ रहे हैं।
नए समीकरणों को लेकर भले ही हवा तेज हो लेकिन पिछले बयानों पर गौर करें तो नेकां के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कई बार कह चुके हैं कि उनकी पार्टी मौजूदा परिस्थितियों में जम्मू कश्मीर में किसी अन्य दल के साथ मिलकर सरकार बनाने की कतई इच्छुक नहीं हैं। मौजूदा विधानसभा को भंग कर नए चुनाव कराए जाएं।
अब इसमें भी एक पेंच है…कुछ दिनों से नेकां नेताओं ने जिस तरह अपने तेवर बदले हैं, उससे सियासत में बदलाव का संकेत माना जा रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव का यह बयान भी बड़े मायने रखता है कि हम वहां किसी अन्य दल के साथ भी सरकार बना सकते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद दिल्ली में जिस तरह डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने भारत माता की जय का नारा बुलंद किया है, उससे यह कहा जा सकता है कि वह भाजपा के साथ कोई चैनल शुरू करना चाहते हैं। वर्तमान में उनकी पार्टी के निलंबित विधानसभा में 15 विधायक हैं, जबकि भाजपा के पास 25 विधायक हैं। सरकार बनाने के लिए चार विधायकों की कमी है। दो विधायक सज्जाद गनी लोन की पार्टी पीपुल्स कांफ्रेंस से हैं, जो संभावित गठबंधन में शामिल रहेंगे। ऐसे हालात में दो निर्दलीयों का वोट जुटाना उनके लिए मुश्किल नहीं होगा। पीडीपी के बागी भी उनका साथ दे सकते हैं।