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राजनीति

अरुण जेटली के निधन से बढ़ी बीजेपी की मुश्किल, पंजाब में बदल सकते हैं समीकरण

Arun Jaitley के निधन से बीजेपी की बढ़ी मुश्किल
पंजाब की राजनीति में लगातार बदल रहे समीकरण
बीजेपी आलाकमान में मंथन का दौर, जेपी नड्डा को जोड़ने की तैयारी

नई दिल्लीSep 02, 2019 / 03:04 pm

धीरज शर्मा

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नई दिल्ली। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के निधन के बाद भारती जनता पार्टी ने ना सिर्फ एक कद्दावर नेता खोया बल्कि राजनीतिक तौर पर बड़ा झटका लगा है। अब इसका असर भी दिखने लगा है। दरअसल पंजाब में बीजेपी के नए अध्यक्ष लिए कवायद शुरू हो गई है। माना जा रहा है जेटली के निधन की वजह से इस बार पंजाब में बीजेपी को मुश्किल हो सकती है।
अध्यक्ष पद के उम्मीदवार अपने-अपने राजनीतिक मोहरे चलने में लगे हैं।

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के निधन के बाद इस बार के प्रदेश अध्यक्ष के चयन में कई समीकरण बदले हुए नजर आएंगे।
इससे कई नेताओं के समीकरण बिगड़ गए हैं, जिसका असर प्रदेश के संगठन पर पड़ना तय है।

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पंजाब बीजेपी में अरुण जेटली का अहम रोल रहा है। यहां की सियासत में कोई कदम उठाने से पहले अरुण जेटली की सलाह जरूर ली जाती थी। जेटली प्रदेश में शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के बीच के एक महत्वपूर्ण पुल का काम करते थे। प्रदेश अध्यक्ष के चयन में भी अरुण जेटली की भूमिका काफी अहम मानी जाती थी।
दरअसल पंजाब में विजय सांपला के हटने के बाद श्वेत मलिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाने में भी जेटली ने ही महत्वपूर्ण रोल प्ले किया था।

लेकिन उनके निधन के बाद समीकरण बदलने लगे हैं। बीजेपी के लिए यहां नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।
वर्तमान पंजाब अध्यक्ष श्वेत मलिक, पूर्व अध्यक्ष कमल शर्मा, अश्विनी शर्मा जेटली के काफी करीबी थे।

यह तीनों ही वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हैं। ऐसे में पार्टी के लिए बड़ी मुश्किल हो गई कि किसे बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जाए।
नड्डा को पंजाब से जोड़ने की तैयारी
बताया जा रहा है कि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के चयन में कुछ उठापटक होना संभावित है।
बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी पंजाब से जुड़े रहे हैं, इसलिए इस बार उनका निर्णय महत्वपूर्ण रहेगा।
शिरोमणि अकाली दल के साथ तालमेल बैठाना चुनौती
भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती शिरोमणि अकाली दल के साथ तालमेल को बनाए रखना है।

क्योंकि दोनों ही पार्टियां लंबे समय से गठबंधन धर्म निभा रही हैं, लेकिन दोनों के बीच खींचतान भी बनी रहती है।
भाजपा आए दिन अकाली दल पर ज्यादा सीटें देने का दबाव बना रही है।

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