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18 साल बाद रणजी क्रिकेट में हुई वापसी, लेकिन बिहार में क्रिकेट बेहाल क्यों?

locationपटनाPublished: Nov 20, 2018 02:19:30 pm

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Prateek

जिस तरह का प्रदर्शन टीम ने अपने पहले मैच में उत्तराखंड के खिलाफ किया, उससे स्पष्ट है कि बिहार में क्रिकेट को मजबूती के लिए एक लंबा रास्ता तय करना होगा…

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(पटना): करीब 18 वर्ष बाद रणजी ट्रॉफी क्रिकेट में बिहार क्रिकेट टीम की वापसी खुशखबरी है, टीम पुड्डूचेरी के खिलाफ अपना दूसरा मैच 20 नवंबर से खेल रही है। जिस तरह का प्रदर्शन टीम ने अपने पहले मैच में उत्तराखंड के खिलाफ किया, उससे स्पष्ट है कि बिहार में क्रिकेट को मजबूती के लिए एक लंबा रास्ता तय करना होगा। यह भी गौर करने की बात है कि जहां बिहार ने 18 वर्ष बाद रणजी ट्रॉफी में वापसी की है, वहीं इस वर्ष 8 राज्यों की नई टीमें पहली बार रणजी क्रिकेट खेल रही हैं।

 

बिहार की क्रिकेट टीम

बिहार की क्रिकेट टीम नई है और इसमें पुराने खिलाड़ी के रूप में मात्र प्रज्ञान ओझा हैं। बिहार टीम के कप्तान प्रज्ञान ओझा का उत्तराखंड के खिलाफ रणजी मैच में प्रदर्शन बहुत खराब रहा है। उन्होंने मात्र एक विकेट लिए और दो पारियों में कुल एक रन बनाकर नाकाम रहे। बिहार टीम की ओर से सबसे अच्छा प्रदर्शन समर सफदर कादरी का रहा है- वे स्पिन गेंदबाज हैं – उन्होंने 3 विकेट लिए और साथ ही दो पारियों में बिहार की ओर से सर्वाधिक 41 रन भी बनाए। बिहार की ओर से मैच खेलने वाले 11 खिलाडिय़ों में से 9 खिलाड़ी ऐसे हैं, जो पहली बार फस्र्ट क्लास क्रिकेट में उतरे हैं। यह अच्छी बात है कि ज्यादातर खिलाड़ी बिहार में जन्में हैं और अनुभव के साथ उनके खेल में सुधार आएगा।

 

अच्छे खिलाडिय़ों का अभाव

बिहार के खिलाड़ी के रूप में विकेट कीपर सैयद सबा करीम ही ज्यादातर लोगों को याद हैं। सबा का जन्म पटना में हुआ था। सबा ने १५ की उम्र में वर्ष 1982-83 में बिहार के लिए क्रिकेट खेलने की शुरुआत की थी। रणजी ट्रॉफी मैच में वर्ष 1990-91 में ओडिसा के खिलाफ उन्होंने 234 रनों की यादगार पारी खेली थी। वर्ष 1983 में क्रिकेट विश्व कप विजेता टीम के सदस्य रहे कीर्ति आजाद भी बिहारी हैं, लेकिन वे दिल्ली में ही पले-बढ़े और वहीं की टीम से क्रिकेट खेलते थे। उनके दो बेटे भी दिल्ली की टीमों के लिए ही खेलते हैं। इसके अलावा कुछ और खिलाड़ी हैं, जिन्हें यदाकदा याद कर लिया जाता है – रमेश सक्सेना, सुब्रतो बनर्जी, ओम प्रकाश, श्यामल सिन्हा, केशव प्रसाद, दलजीत सिंह, आनंद शुक्ल, राकेश शुक्ल, तिलकराज, शेखर सिन्हा, काजल दास, हरि गिडवानी, अविनाश कुमार, बदलेव गोंसाई, अमीकर दयाल और रणधीर सिंह इत्यादि।

 

20 साल से एक अच्छा मैच नहीं

बिहार में अच्छे स्टेडियम का अभाव है। बिहार के सबसे अच्छे मोईनुल हक स्टेडियम में 25000 दर्शकों के लिए ही व्यवस्था है और अच्छी क्रिकेट के लिए इसका इस्तेमाल हुए 20 वर्ष बीत चुके हैं। इस स्टेडियम पर वर्ष 1996 में जिम्बाब्वे और कीनिया के बीच विश्व कप क्रिकेट का मैच हो चुका है। बिहार के खाते के मैच जमशेदपुर के कीनन स्टेडियम को ही मिलते थे, लेकिन वह भी झारखंड में चला गया। स्टेडियम के अलावा बिहार में खेल प्रशिक्षण सुविधा का भी अभाव है।

 

क्रिकेट में बिहार क्यों पिछड़ा?

बिहार क्रिकेट एसोसिएशन वर्ष 1935 में ही बन गया था, लेकिन देश को आजादी मिलने के बाद भी क्रिकेट को सरकार ने बढ़ावा नहीं दिया। झारखंड के अलग होने के बाद बिहार में क्रिकेट में राजनीति बढ़ी। मान्यता का प्रश्न उलझने लगा। लालू प्रसाद यादव 20 मई वर्ष 2001 में बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए। बोर्ड अध्यक्ष ए सी मुथैया ने आनन-फानन में लालू के एसोसिएशन को मान्यता दी, लेकिन ठीक एक दिन बाद ही बोर्ड अध्यक्ष बने जगमोहन डालमिया ने मान्यता रद्द कर दी। झारखंड के क्रिकेट संघ को अधिकृत कर दिया और तब से लेकर वर्ष 2017 तक बिहार के किक्रेटर झारखंड पर निर्भर रहे।

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