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पटना

इलेक्शन स्पेशल…मात्र तीन सीटों-सारण, मधेपुरा और पाटिलिपुत्र से तय होगा लालू यादव का सियासी इक़बाल

विशेष संवाददाता प्रियरंजन भारती की रिपोर्ट…
 

पटनाApr 08, 2019 / 09:47 pm

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(पटना): राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी लालू यादव की सियासत इस दिनों हो रहे चुनाव में उनके इक़बाल के दांव पर लगे होने से खूब चर्चा में है। लालू यादव खुद तो जेल में हैं, पर उनके उत्तराधिकारी के बतौर पुत्र तेजस्वी यादव धुंआधार दौड़ लगा रहे। पूरे सूबे में एनडीए और महागठबंधन में ही सीधी लड़ाई के वातावरण बने हैं, पर इनमें खास तौर से तीन सीटों की लड़ाई लालू यादव की पहचान और प्रतिष्ठा से जुड़ गई है। ये तीन सीटें हैं सारण, मधेपुरा और पाटलिपुत्र। लड़ाई में खुद न रहते हुए भी लालू तीनों सीटों पर अपनी साख, धाक और नाक बचाने की जंग में फंसे हैं। मधेपुरा में शरद यादव हैं, जिनसे बड़े अंतराल के बाद निकटता बनी है। सारण में समधी चंद्रिका राय और पाटलिपुत्र में बड़ी बेटी मीसा भारती। तीनों ही सीटों पर लालू यादव की अपनी यादव जाति के सियासी प्रतिनिधित्व का भी बड़ा सवाल है।

 

मधेपुरा

मधेपुरा एक ऐसी सीट है, जहां 1999 के चुनाव में लालू पहली बार शरद यादव से मात खा गए थे। लालू यादव का यह दावा खोखला साबित हो गया था कि वह यादवों के असली नेता हैं लेकिन वक्त की नज़ाकत देखिए कि वही शरद यादव आज लालू यादव की छतरी की छाया में मधेपुरा से पनाह मांग रहे हैं। पिछली बार आरजेडी से पप्पू यादव ने शरद को पछाड़ दिया और इस बार पप्पू खुद आरजेडी से अलग होकर लड़ाई को तिकोना बनाने में लगे हैं।

 

सारण

सारण में समधी चंद्रिका राय के बहाने लालू यादव का अस्तित्व दांव पर है। वह बड़े बेटे तेजप्रताप यादव की पत्नी ऐश्वर्या राय के पिता और पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय के पुत्र हैं। दारोगा राय की सारण क्षेत्र में एक खास पहचान रही है। एक जमाने में जब लालू राजनीति में क़दम रख रहे थे तब दारोगा राय ने इन्हें आगे बढा़ने में बड़ी मदद की थी। उस रिश्ते को लालू परिवार ने तेजप्रताप की शादी कर अहमियत दी। यह और बात है कि तेज के रवैये ने इन रिश्तों में थोड़ी खटास भी भरी। पिछला चुनाव राबड़ी देवी लड़ीं और भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी से 40948 वोटों से हार गईं। लालू यादव राजपूत बहुल इस क्षेत्र से चार बार सांसद रहे हैं।

 

पाटलिपुत्र

पाटलिपुत्र में लालू यादव पिछले चुनाव में अपनों ही से गच्चा खा गए थे। बड़ी बेटी मीसा भारती मैदान में उतरीं, तो भरोसे के रहे रामकृपाल यादव ने भाजपा का दामन पकड़ मैदान में ताल ठोंक दी। मीसा 40322 वोटों से हार गईं। 2009 में लालू अपने राजनीतिक गुरु रंजन यादव से पराजित हो गए थे। इस बार फिर आर पार की लड़ाई है। मीसा की टक्कर फिर रामकृपाल से होनी है। महत्वपूर्ण यह है कि वामदलों का कोई उम्मीदवार लड़ाई में यदि नहीं टिका, तो फिर आमने-सामने की भिड़ंत होगी।

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