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महागठबंधन की समीक्षा बैठक में तेज-तेजस्वी के झगड़ों को लेकर बवाल, किसी ने तेजस्वी से मांगा इस्तीफा, किसी ने तेजप्रताप को कोसा

locationपटनाPublished: May 28, 2019 06:09:24 pm

हार के कारणों की समीक्षा बैठक में कई नेताओं ने अपनी पीड़ा खुले मन से व्यक्त की…

tej-tejashwi file photo

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(पटना): महागठबंधन की करारी हार की दोदिवसीय समीक्षा बैठक के शुरू में कई नेताओं ने तेजप्रताप और तेजस्वी के झगड़ों पर ठीकरा फोड़ा। राबड़ी देवी के राजकीय आवास में आज शुरु हुई बैठक में कई नेता बिफर पड़े। बैठक के पूर्व ही वरिष्ठ आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने मोर्चा खोल दिया। उन्होंने तेजप्रताप यादव और तेजस्वी के झगड़ों को हार का अहम कारण बताते हुए तेजप्रताप यादव पर कार्रवाई की मांग भी कर डाली। रघुवंश प्रसाद सिंह लोकतंत्र की जननी कही जाने वाली वैशाली में लोजपा की वीणा देवी से भारी मतों के अंतर से पराजित हो गए हैं।


हार के बाद रांची रिम्स में इलाजरत आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव डिप्रेशन में हैं जबकि पार्टी में सिरफुटौव्वल शुरु हो गया है। महागठबंधन बनने के बाद लालू यादव ने सभी सहयोगी दलों का अहम फैसला रांची में ही रहकर किया था। सहयोगी दलों की सीटों और उम्मीदवारों के चयन भी लालू यादव की सहमति से किए गए। यह पहली बार हुआ कि महत्वपूर्ण फैसलों के बावजूद लालू यादव की गैरमौजूदगी में चले चुनावी अभियान के बाद महागठबंधन की करारी हार हुई और आरजेडी का सूपड़ा बिहार में पूरी तरह साफ हो गया।


हार के कारणों की समीक्षा बैठक में कई नेताओं ने अपनी पीड़ा खुले मन से व्यक्त की। जहानाबाद में मात्र सत्रह सौ वोटों से जदयू से हार चुके आरजेडी विधायक सुरेंद्र यादव ने भी हार की जिम्मेदारी तेजप्रताप यादव पर डाल दी। तेजप्रताप ने सुरेंद्र यादव को आरएसएस का एजेंट तक क़रार दिया था। पार्टी एक वरिष्ठ विधायक महेश्वर यादव ने एक दिन पूर्व ही पार्टी को परिवारवाद के दायरे से बाहर निकालने की ज़रूरत पर जोर देते हुए तेजस्वी यादव के विपक्ष के नेता पद से इस्तीफे की मांग कर डाली थी। यादव ने यह भी कहा कि वह पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं को अहम पदों पर नियुक्त करने की मांग लंबे समय से लालू यादव से करते आ रहे हैं लेकिन उनकी बातों को अनसुना किया जाता रहा है। बता दें कि मुस्लिम—यादव (एमवाई) समीकरण के बड़े आधार पर खड़ी आरजेडी को बिहार में घोर पराजय का सामना करना पड़ा। उसे एक भी सीट हासिल नहीं हुई। जबकि यादव और मुस्लिम वोटों में भी जबर्दस्त विभाजन हुआ।

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