जुलाई 2019में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के विशेषज्ञों की बैठक में भी लीची को कारण नहीं माना गया। इस बार यह बीमारी तब फैली जब लीची का मौसम खत्म हो गया था। बीमारी से मरे बच्चों में किसी तरह का जहर नहीं पाया गया। इनमें ऐसे भी थे जो रात का खाना तो खाए पर लीची नहीं खाई।
चिकित्सकों का शोध लीची सही है
दिल्ली में जुलाई में हुई बैठक मे विशेषज्ञों ने लीची पर संदेह तो व्यक्त किया पर साड विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ इस पर एकमत नहीं हुए। सौ से अधिक डॉक्टरों की शोध ( Reasearch 100 doctors ) में यह निष्कर्ष निकल कर आया कि मई से जून तक मुजफ्फरपुर में जो गर्मी पड़ती है वह और क्षेत्रों से एकदम अलग ही होती है। यहां रात में बेहद अधिक तापमान रहता है। कुपोषण और खाली पेट रहने से बच्चे हाइपोग्लेसिमिया की चपेट में आ जाते हैं। इससे उन बच्चों का माइटोकॉन्ड्रिया फेल हो जाता है।
बिहार सरकार की नई पहल
कई संगठनों की मांग पर बिहार सरकार चमकी बुखार के मुख्य कारणों में से लीची को हटाने की पहल शुरु कर दी है। स्वास्थ्य विभाग ने जिला प्रशासन को नोटिस भेजकर इस बारे में पहल करने को कहा है। विभाग के अधिकारी डॉ हतीश कुमार ने कहा कि लीची शुरु से ही बीमारी का कारण नहीं थी। इस वर्ष चमकी बुखार के 628 बच्चे भर्ती हुए थे जिनमें 165 से अधिक की मौत हो गई थी।