यूं बदलती रही कोसी की जद
तेजी से धारा बदलने के लिए बदनाम कोसी का इतिहास कमोबेश यही कहता है। 1731में फारबिसगंज पूर्णिया के पास बहने वाली कोसी पश्चिम की ओर खिसकती चली गई।1882में मुरलीगंज होते हुए 1922में मधेपुरा और 1936में सहरसा, दरभंगा, मधुबनी पहुंच गई।इस तरह सवा दो सौ साल में इसने 110किलोमीटर पश्चिम की ओर रुख कर लिया।फिर 1959में इसे तटबंधों में कैद कर दिया गया।तब यह फिर पूरब की ओर लौटने लग गई।1984 में नवहट्टा के पास तटबंध टूटा तो इसने अहसास करा दिया की इसकी व्यग्रता कम होने वाली नहीं है। इसके बाद पूर्वी तटबंध पर इसकी आक्रामकता लगातार बढ़ती गई।
लिख डाली नई विनाशलीला, 250 की मौत
2008में पूर्वी तटबंध तोड़कर इसने विनाशलीला की नई इबारत लिख डाली। इसे तटबंधों में इसीलिए कैद किया गया कि इसकी आक्रामकता कम हो जाए।126किमी पूर्वी तथा122किमी पश्चिमी तटबंध का निर्माण कराया गया। इस दौरान करीब 250 लोगों की मौत हुई थी और इस बाढ में 3 लाख से ज्यादा घर बाढ की चपेट में आ गए थे, 3 लाख 40 हजार हैक्टेयर जमीन में खेती को नुकसान हुआ था
56 फाटक वाला बराज का निर्माण
1959में 56फाटकों वाले 1149मीटर लंबे बराज का निर्माण कराया गया।सहरसा, पूर्णियां, मधेपुरा, कटिहार आदि जिलों में 2269लाख एकड़ क्षेत्रफल में करीब 2887किमी लंबी नहरों का जाल बिछाया गया।मकसद बस यही कि पानी का दबाव कम कर सिंचाई में इसका भरपूर उपयोग किया जा सके। लेकिन कोसी की धाराओं में परिवर्तन नहीं रोका जा सका। विनाशलीला का पर्याय बनी शोक नदी कोसी फिर भी अपनी प्रकृति के अनुरूप धारा बदलने से बाज नहीं आई।2016में कोसी फिर पश्चिम की ओर बढ़ने लगी।लगातार पश्चिमी तटबंध पर फिर इसका दबाव बढ़ने लगा।
पचास से ज्यादा को निगला
इस दफा 2019 में फिर कोसी अपने मिजाज से मचल रही है तो बड़े भूभाग के बाशिंदों में मौत की रूह कंपा देने वाली दहशत ने डेरा डाल लिया है।पिछले दो तीन दिनों में ही कोसी ने विद्रूप और बिगड़ैल सूरत दिखाकर पचास जानें लील ली है और हजारों को दरदर भटकने को मजबूर कर दिया है।पश्चिमी तटबंध पर कोसी का उत्पात यदि थमा नहीं तो हालात और भी भयानक हो जाएंगे।