सरकारी तंत्र के मजाक उड़ाने का यह खुलासा आरटीआई ऐक्टिविस्ट अनिल कुमार सिंह के प्रयासों की देन है। सिंह के आवेदन पर यह राज खुला कि विभाग के ये सभी कार्यालय 2012 से ही लापता हैं। यह भी बहुत चौंकाने वाला सच है कि इन विभागीय कार्यालयों से हर महीने वेतन और अन्य मदों में लाखों की निकासी की जा रही है। अधिकारी सुरेश कुमार सिंह ने स्वीकार किया कि ये सभी कार्यालय वर्षों से कागजों पर ही चल रहे हैं और सरकारी खजाने से काम के नाम पर लाखों के फंड कोषागारों से निकाले जा रहे हैं।
विभाग ने इस मामले में 14 कार्यपालक अभियंताओं को जिम्मेदार बताते हुए उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है। विभाग ने सुपौल जिले के 11 प्रखंड मुख्यालयों में 23 शाखा कार्यालय और 11 प्रशाखा कार्यालय 1 अप्रैल 2012 से खोलने के निर्देश दिए थे। किसुनपुर प्रखंड में तीन, निर्मली में दो, मुरैना में एक, बसंतपुर में एक, राघोपुर में दो, प्रतापगंज में एक, सरायगंज में दो, भटिआही में दो, छातापुर में तीन, त्रिवेणीगंज में तीन और पिपरा में दो कार्यालय खोलने के निर्देश दिए गये। साथ ही वेतन भुगतान तथा अन्य खर्चों के लिए वेतन प्रमंडल कार्यालय भी खोलने के निर्देश दिए गये।
वेतन प्रमंडल कार्यालय तो खोल लिए गये लेकिन बाकी प्रशाखा और शाखा कार्यालय कागजों में खोले बता दिए गये। जबकि इनमें कार्यरत कार्यपालक अभियंताओं और अन्य कर्मियों के वेतन मद में हर माह लाखों की निकासी कोषागारों से की जा रही है। विभाग ने इन गायब.कार्यालयों के पता लगाने यानी उन्हें धरातल पर उतारने के निर्देश देते हुए 14 कार्यपालक अभियंताओं को चिन्हित कर उनके विरूद्ध विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है। अब यह देखना होगा कि वास्तव में कोई कार्रवाई भी हो पाती है या यह यूं ही सुशासन की ढिंढोरे की भेंट चढ़ जाती है।